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________________ परमात्मा बनने की कला चार शरण पत्नी से कहा। 'हाँ, स्वामीनाथ! अपने चार पुत्र हैं; एक को दे दें। अपनी दरिद्रता समाप्त हो जाएगी।' पत्नी ने कहा। _ 'कौन सा पुत्र दूं?' 'इसमें पूछने की क्या बात है? सबसे छोटा अमरिआ (अमर कुमार) खा पीकर हृष्टपुष्ट हो गया है। घर में कोई काम करता नहीं, मैं भी उससे दुःखी हो गई हूँ। उसे दे दो, एक आफत कम हो जायेगी और हमारी दरिद्रता मिट जायेगी।' ___ अमर कुमार भद्रा का सबसे छोटा पुत्र था। उसकी खुराक घर में सबसे अधिक थी। खुशमिजाजी एवं लट्ठबाज था। यदि वह किसी से लड़ाई करे तो एक ही मुष्टि प्रहार में सामने वाले की बत्तीसी बाहर निकाल दे, ऐसा ताकतवर था। घर में बदमाशी भी खूब करता था और बाहर सबके साथ झगड़ा करता था। घर का कोई काम करने के लिए कहें तो वह तुरन्त मना कर देता था। माता पिता उससे दुःखी थे। किंतु... दुनियाँ में कहावत है, पुत्र कुपुत्र हो सकता है पर माँ कभी कुमाता नहीं होती। अपने पेट के पुत्र को बलि के लिए बेच देने का इस ब्राह्मण माता-पिता का बहुत ही क्रूरता भरा यह विचार था। हाय! संसार कितना स्वार्थी है, क्रूर है, ऐप्ते संसार को सौ कोस दूर से ही प्रणाम कर देना चाहिए। संसार को लात मार कर संयम ही लेना चाहिए। माता-पिता ने अमर कुमार को बलि के लिए राजा को सौंप देने का अंतिम निर्णय कर लिया। 'राजन् ! नमस्कार! आपकी चित्रशाला पूर्ण नहीं हो रही है, इसका प्रजाजन के रूप में हमें बहुत दुःख है। आपके दुःख में हम भी दुःखी हैं। बहुत विचार के बाद अन्त में आपके जैसे महान राजा की इच्छा को पूर्ण करने के लिए हम अपने प्रिय सुन्दर पुत्र को बलि देने के लिए सौंपने को तैयार हैं।' ब्राह्मण ने राजमहल में जाकर राजा को अपना अंतिम निर्णय बता दिया। 'मेरे प्रिय प्रजाजन! पूरे नगर में मात्र तुमने ही मेरे हृदय के दुःख को स्पर्श किया। तुझे धन्यवाद है।' प्रसन्न राजा ने सम्मानपूर्वक ब्राह्मण और ब्राह्मणी को विदा किया। दीवारों के भी कान होते हैं। पूरे नगर में यह बात फैल गई। अमर के एक मित्र ने उससे कहा, 'मित्र समाचार मिले?' 94 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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