________________
परमात्मा बनने की कला
सुकृत अनुमोदना वधू के पेट में भयंकर दर्द हो रहा था। डॉक्टर आकर गये। देखा, दवा भी ली पर दर्द में कोई आराम नहीं हुआ। सभी चिंतित थे। दूसरा कोई उपाय भी नजर नहीं आ रहा था। बहू ने रोते-रोते कहा- 'मुझे बचाओ-बचाओ! मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा है। अन्दर ही अन्दर नसें फट रही है। माँ ने कहा- 'पार्श्वनाथ दादा को याद कसे सब अच्छा हो जाएगा। श्रद्धा से लिया गया नाम दर्द को मिटा देगा। मुझे तो पार्श्वदादा पर ही श्रद्धा है। बेटी! एक गिलास पानी लाना।' ...और माँ पार्श्वनाथ परमात्मा का नाम स्मरण कर उस जल को अभिमंत्रित करती है तथा पार्श्वनाथ दादा की धुन चालू करा देती है। सभी दादा का नाम स्मरण करते हैं। प्रार्थना करते हैं। वह जल पिलाती है और थोड़ी ही देर में दर्द भाग जाता है। बहूरानी के रोने की आवाज बन्द देखकर सभी ने पूछा- 'क्या दर्द ठीक हो गया?' बहू ने कहा- 'माँ ने जल पिलाया और कुछ ही पलों में दर्द दूर हो गया। वह माँजी कहाँ हैं?' .
बुढ़िया माँ जी तो अपने कमरे में पहुँच चुकी थी। किसी को पता नहीं था कि माँ जी कहाँ से आई और कहाँ गई? बुदियामाँजीकी निस्पृहता
शाम होने पर बहूरानी ने विचार किया। माँ जी ने मुझे बचाया है। जो उपकारी होते हैं, उनका उपकार नहीं भूलना चाहिए। मुनीम जी को भेजकर खोज करवाया कि माँ जी कहाँ हैं? मुनीम जी खोज कर श्रेष्ठिवर्य के पास आता है। श्रेष्ठिवर्य स्वर्ण मुद्रा लेकर माँ जी के पास आता है। चरण स्पर्श कर थाल पास में रखता है और हाथ जोड़कर विनती करता है- 'आपने बहू पर ही नहीं अपितु पूरे परिवार पर उपकार किया है। आप इसे प्रेम से स्वीकार कर लीजिए।'
___ माँ जी- 'मैंने कुछ नहीं किया, यह मात्र पार्श्वनाथ दादा की कृपा है। कुछ करना है तो उनकी भक्ति करो।'
___ बुढ़िया ने भेंट लेने से साफ इन्कार कर दिया। स्वयं के पास पहनने को अच्छी साड़ी नहीं, इसके उपरान्त आई हुई स्वर्ण मुद्राओं को ठुकरा दिया। पर श्रेष्ठिवर्य भी खाली लौटने वाला नहीं था। यहाँ माँ जी भी दृढ़ थी। जो हुआ दादा के प्रभाव से हुआ, स्वयं के भाव एकदम निस्पृह। मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। बुदियामाँजी कीउदात्तभावना
श्रेष्ठिवर्य ने कहा- 'माँ जी आप स्वीकार नहीं कर रही हो तो आप की कोई भावना हो तो कहो, जिस धर्म क्षेत्र में लगाना हो, वहाँ लगाकर आपकी भावना पूर्ण कर देंगे।'
Jain Education International
196 For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org