________________
परमात्मा बनने की कला
सुकृत अनुमोदना थारा म्हारा योग थी, पथरा पड़शे रांड॥ __ यह दान नहीं सौदा है। हमारे ज्ञानी भगवन्तों का कथन है, दान दो तो भावपूर्वक और शील का पालन करो तो भी भावपूर्वक। शीलधर्म
यहाँ शील का अर्थ सदाचार के बजाय ब्रह्मचर्य ही इष्ट है। 'शीलं ब्रह्मचर्यम्'। ब्रह्मचर्य का पालन किसी की देखा-देखी या वाह-वाह के लिए नहीं बल्कि भावपूर्वक करना चाहिए। आज समाज में मेरी प्रतिष्ठा बढ़ेगी, इस हेतु से शीलवत ग्रहण करता हूँ। ऐसा शीलवत मात्र कायक्लेश ही माना गया है। भावपूर्वक शीलपालन से हमारा अर्थ है, विषय वासनाएँ व्यक्ति को पीड़ित न करें तो भावपूर्वक शील पालन बनता है। बाकि द्रव्यशील पालन तो आज भी सैकड़ों लोग कर रहे हैं। नौकरी करने के लिए बाहर गांव में रहने वाले, जिनका परिवार साथ में न हो, ऐसे लोग भी ब्रह्मचर्य का पालन तो करते हैं, विधुर हो या विधवा हो तो वे भी शील तो पालते ही हैं। वे देह से शील का पालन करते हैं। किन्तु उनका मन तो वासनाओं से भरा पड़ा रहता है। इसे द्रव्यशील से अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता है।
___ जरा गुणसागर श्रेष्ठि का विचार करो। कहाँ बैठे हैं वे अभी? लग्न मंडप में, चंवरी मंडप में, किन्तु कैसे भावों में रंजित हो गए होंगे कि आठ-आठ कन्याओं के साथ विवाह करते-करते भी उन्हें केवलज्ञान हो गया। है ना आश्चर्य! विवाह मंडप में केवलज्ञान? हाँ, सच्ची घटना है यह। गुणसागर सेठ को हस्त-मिलाप करते ही केवलज्ञान • हो गया, क्योंकि उसके पास भावपूर्ण शील था। गुणसागर की कथा
थे तो वे सेठ के पुत्र। गुणसागर नाम था उनका। जैसा नाम वैसे गुण थे उनमें। सचमुच गुण के सागर ही थे सेठ गुणसागर। यौवन के झूले-झूलते गुणसागर कुमार नगर . में परिभ्रमण हेतु निकले थे। नगर के सेठ की आठ कन्याओं ने गुणसागर को देखा। देखते ही उन्हें गुणसागर पसन्द आ गया। आठों-आठ कन्याओं ने मनोमन निश्चित किया, शादी करेंगे तो गुणसागर कुमार के साथ।
कन्याओं के पिता कुमार गुणसागर के पिता रत्नसंचय सेठ के पास गए। उन्होंने गुणसागर के साथ अपनी आठों कन्याओं की शादी का प्रस्ताव रखा। रत्नसंचय सेठ ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। गुणसागर के साथ आठ-आठ कन्याओं की सगाई कर दी गई।
Jain Education International
183 For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org