________________
अन्तर आशी अमृतम,
मानव जीवन में प्रसन्ता, सहजता और मृत्यु में समाधि पाने का एकमात्र साधन है स्वाध्याय। स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं का चिंतन करना, स्वयं का निरीक्षण और अध्ययन करना। स्वाध्याय स्वयं द्वारा स्वयं की शोध है। स्वयं के गुणों एवं दोषों की तुलनात्मक समीक्षा ही सच्चा स्वाध्याय है। स्वाध्याय अर्थात मात्र पढ़ना ही नहीं अपितु विधि, विवेक एवं एकाग्रता के साथ सम्यक् चिंतन करना है। .
जिस अध्ययन में अशांति, कषाय, कामनाएं, तनाव, राग-द्वेष आदि बढ़े, जिससे आत्मा का अहित हो, वह स्वाध्याय नहीं है। आगम सूत्रों का, वीतराग परमात्मा की वाणी का अध्ययन ही सच्चा स्वाध्याय है। आगमिक स्वाध्याय से जीवन में सम्यक् बोध होता है। आत्मा पर आच्छादित अज्ञान, मोह का आवरण दूर होता है। स्वाध्याय से नकारात्मक सोच सकारात्मक बनती है। जीवन में धैर्य, सहनशीलता, विकसित होने लगती है। स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्मों का क्षय होता है। भविष्य में ज्ञानेन्द्रियां सशक्त बनती है। स्वाध्याय समुद्र में गति करने वाले जलयान के लिए प्रकाश स्तम्भ के समान, सड़क पर चलने वाले वाहनों का नियंत्रण करने हेतु स्पीडब्रेकर जैसा, गलत गाड़ी में यात्रा करने वालों के लिए टिकिट निरीक्षण के समान है। .. . वीतराग सर्वज्ञ कथित आगम, पूर्वधरों द्वारा विरचित सूत्रों का अध्ययन कर्म क्षय की अमोघ साधना है। पंचसूत्र भी महाशास्त्र है। किसी प्राचीन आचार्य भगवंत से विरचित होने के कारण इसे चिरन्तनाचार्य रचित कहा जाता है। आचार्य हरिभदसूरिजी ने इस महाग्रंथ पर संक्षिप्त विवेचन लिखा है। इससे ऐसा प्रमाणित होता है कि यह शास्त्र किसी .
09
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org