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________________ ॐ ५०२ ® कर्मविज्ञान : भाग ६ * से विरत होने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। इससे कर्मों का संवर और अंशतः क्षय (निर्जरा) भी होगा। आत्मा पर-भावों में रमण करने से हटकर स्वभाव में स्थित होकर ऊर्ध्वगामी बनेगी। सत्रहवाँ पापस्थान : माया-मृषावाद : एक अनुचिन्तन माया मृषावाद में दो पापस्थानों (आठवें और दूसरे) का मिश्रण है। इसका अर्थ किया गया है-“मायातः उत्पन्नः मृषावादः = माया मृषावादः।" अर्थात् माया = कपट से उत्पन्न मृषावाद = झूठ। झूठ ऐसे बोलना जो कपटपूर्वक हो। ऐसा झूठ बोलना या असत्याचरण करना, जो कपट सहित हो, पकड़ में न आ सके। अर्थात् माया का सेवन करते हुए असत्य का आचरण करना माया मृषावाद है। इसे सीधे शब्दों में कहा जाए तो दम्भ, दिखावा, ढोंग, छलना या प्रतारणा करना या दूसरों को फँसाने के लिये जाल बिछाना, जालसाजी या झूठ-फरेब करना कह सकते हैं। माया-मृषावादी वारांगना के समान अनेकरूपता से युक्त माया-मृषावाद का लक्षण करते हुए कहा गया है "मनस्यन्यद् वचस्यन्यद् मायामृषा च शोच्यते। कदापि सुखदा न स्याद्, विश्वे यथा पण्यांगना।" -जिस प्रकार संसार में वारांगना की वृत्ति-प्रवृत्ति मन-वचन में भिन्न-भिन्न होती है, उसी प्रकार मन में कुछ और हो तथा वचन-व्यवहार में उससे भिन्न कुछ और हो, वह माया मृषा कहलाती है। वह कदापि सुखदायिनी नहीं होती। ___ वेश्या के मन में केवल धन-प्राप्ति की इच्छा रहती है, उसके अन्तर में किसी के प्रति सच्चा प्रेम नहीं होता, किन्तु बाहर से वह कृत्रिम प्रेम दिखाती है, अनुरागपूर्ण वचन बोलती है, उसी प्रकार माया मृषावादी मन में कुछ और विचार रखता है और बोलने में बहुत ही माधुर्ययुक्त अनुरागपूर्ण वचन-व्यवहार रखता है। महात्मा और दुरात्मा में अन्तर : एकरूपता और विपरीतता नीतिकार भी महात्मा और दुरात्मा का लक्षण इस प्रकार का बताते हैं"महात्माओं के मन में, वचन में और कायचेष्टा में एकरूपता होती है, वे जो भी बात मन में सोचते हैं, वही वचन से बोलते हैं और काया से व्यवहार भी वैसा ही करते हैं, किन्तु दुरात्मा पुरुषों के मन में कुछ और होता है, वचन से कुछ और ही बोलते हैं और काया से व्यवहार कुछ और ही प्रकार का करते हैं।" निष्कर्ष यह है १. 'पाप की सजा भारी, भा. २' से भाव ग्रहण, पृ. ९६१, ९६९
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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