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* चारित्र : संवर, निर्जरा और मोक्ष का साधन * ३७९ *
का छेद करना.अथवा दूषित महाव्रत या महाव्रतों का पुनः आरोपण करना। इस दृष्टि से छेदोपस्थापनीयचारित्र दो प्रकार का बताया गया है-निरतिचार और सातिचार। छेद का अर्थ जहाँ विभाग किया जाता है, वहाँ निरतिचार और जहाँ दीक्षापर्याय का छेदन (घटाना) किया जाता है, वहाँ सातिचार समझना चाहिए।'
___दिगम्बर परम्परा में छेदोपस्थापनाचारित्र का स्वरूप दिगम्बर परम्परा में छेदोपस्थानाचारित्र के मुख्यतया तीन लक्षण किये गए हैं(१) जिसमें हिंसा, चोरी, असत्य आदि विशेष रूप से भेद (छेद) पूर्वक पापं क्रियाओं का त्याग किया जाता है, उनके स्थान पर महाव्रत या महाव्रतों का आरोपण किया जाए। (२) श्रमणों के मूल गुण रूप महाव्रतों में से किसी एक या अनेक महाव्रत का भंग हो जाने पर महाव्रत में गम्भीर दोष लग जाने पर अमुक काल तक की दीक्षा घटाकर छेद प्रायश्चित्त देकर शुद्धि की जाए। (३) पूर्णतः साम्यचारित्र का नाम सामायिक (निश्चय) चारित्र है, जो निर्विकल्पात्मक होती है। परन्तु उसमें अधिक समय तक स्थिर न रहने के कारण विकल्पात्मक (व्यवहार) चारित्र यानी व्रत, समिति, गुप्ति आदि रूप शुभ क्रियानुष्ठानों में अपने को स्थापित करना भी छेदोपस्थापनीयचारित्र है।
श्वेताम्बर परम्परा में परिहारविशुद्धि का स्वरूप और विधि .. परिहारविशुद्धिचारित्र-यहाँ परिहार का अर्थ है-प्राणिवध से निवृत्ति। परिहार से जिस चारित्र का अंगीकार करके कर्मकलंक की विशुद्धि (प्रक्षालन) की जाती है, वह परिहारविशुद्धिचारित्र है। इसकी विधि इस प्रकार है-प्रथम छह महीनों में ४ साधु (ऋतु के अनुसार उपवास से लेकर पचौला तक की) तपस्या करते हैं, ४ साधु उनकी सेवा करते हैं और एक साधु वाचनाचार्य (गुरु स्थानीय) रहता है। दूसरी छमाही में तपस्या करने वाले ४ साधु सेवा करते हैं और जो सेवा करने
१.. देखें-उत्तराध्ययन, अ. २८, गा. ३२-३३ का विवेचन, पृ. ४८२ २. (क) यत्र हिंसादिभेदेन त्यागः सावद्यकर्मणः। . व्रतलोपे विशुद्धिर्वा छेदोपस्थानं हि तत्॥
-तत्त्वार्थसार ५/४६ (ख) तस्यैकस्य व्रतस्य छेदेन द्वित्यादि भेदेनोपस्थापनं व्रतसमारोपणं छेदोपस्थापनशुद्धिसंयमः।
-धवला १/१, १/१२३/३७०/१ (ग) छेत्तूण य परियायं पोराणं जो ठवेइ अप्पाणं। पंचजमे धम्मे सो छेदोवट्ठावगो जीवो॥
--पंचसंग्रह (प्रा.) १/१३० (घ) एदं खलु मूलगुणा समणाणं जिणवरेहिं पण्णत्ता। तेसु पमत्तो संमणो छेदोवट्ठावगो होदि॥
-प्रवचनसार, मू. २०९ (ङ) देखें-'जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश, भा. २' में छेदोपस्थापनाचारित्र की व्याख्या, पृ. ३०७