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संवर और निर्जरा का द्वितीय साधन : पंच-समिति १२९
एषणासमिति के अतिचार हैं-मन
'भगवती आराधना' में एषणासमिति के निम्नोक्त अतिचार बताये गए से उद्गमादि-दोषों से युक्त आहार लेने का विचार करना, वचन से ऐसे ( दोषयुक्त) आहार के लिए सम्मति देना, उसकी प्रशंसा करना और काया से ऐसे आहार की प्रशंसा करने वालों के साथ रहना, प्रशंसादि कार्य में दूसरों को प्रवृत्त करना एषणासमिति के अतिचार (दोष) हैं । '
आदान-निक्षेप-समिति : स्वरूप और विधि
इसके बाद आदान-निक्षेप-समिति से भी संवर और निर्जरा का विधान किया गया है। आदान-भण्डमात्र निक्षेपणा समिति का ही संक्षिप्त रूप आदान-निक्षेप या आदान-निक्षेपण समिति है। इसका अर्थ है - प्रत्येक उपकरण या संयम - यात्रा में उपयोगी वस्तुओं को भलीभाँति देखकर, प्रमार्जित करके उठाना या रखना । ‘मूलाचार' के अनुसार- ज्ञानोपधि, संयमोपधि और शौचोपधि तथा अन्य संथारे (संस्तारक, शय्या) आदि के निमित्तं जो उपकरण हों, उनको यतनापूर्वक उठानारखना आदान-निक्षेपण-समिति है । 'भगवती आराधना' शीघ्रता के अनुसार शीघ्रता से, बिना देखे-भाले, अनादर से, बहुत काल से रखे हुए उपकरणों को उठाना - रखना रूप दोषों का जो त्याग करता है, उसके आदान-निक्षेपण-समिति होती है। 'राजवार्तिक' के अनुसार- धर्माविरोधी और परानुपरोधी ज्ञान और संयम के साधक उपकरणों को देखकर और शोधकर रखना और उठाना आदाननिक्षेपण-समिति है। वास्तव में रजोहरण, वस्त्र, पात्र आदि उपकरणों को उठाते और रखते समय उस स्थान को, जीव-जन्तुओं को अच्छी तरह देखभाल कर (मार्जन करके यतनापूर्वक उठाना - रखना आदान-निक्षेप-समिति है ।
पेछले पृष्ट का शेष
निग्गंथो धिइमंतो, निग्गंथी वि न करेज्ज छहिं चेव । ठाणेहिं उ इमेहिं, अणइक्कमणाइ से होइ ॥ ३४ ॥
आयंके उवसग्गे तितिक्खया बंभचेरगुत्तीसु ।
पाणिदया-तवहेउं सरीर-वोच्छेयणट्ठाए ॥ ३५ ॥ - उत्तराध्ययनसूत्र, अ. २६, गा. ३२-३५
(ख) वेयण-वेयावच्चे किरियाठाणे य संजमट्टाए ।
तव पाण-धम्मचिंता कुज्जा एवेहिं आहारं ॥
१. उद्गमादि-दोषे गृहीतं भोजनमनुयननं वचसा कायेन वा प्रशंसा ।
तैः सह वासट, क्रियासु प्रवर्तनं वा एषणासमितेरतीचारः ॥
- मूलाचार ६ / ६० वृत्ति
-भगवती आराधना (वि.) १६ / ६२/७