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प्रकृतिसमुत्कीर्तन पहली गुणहानिमें ३२०० । दूसरोमें १६००, तीसरीमें ८००, चौथीमें ४००, पाँचवीमें २००
और छठीमें १०० । सबका जोड़ ६३०० हो जायेगा । यतःप्रत्येक गुणहानिका काल ८ समय है, अतः ऊपर बतलाये गये प्रत्येक गुणहानिके ३२००, १६०० आदि परमाणु इन आठ-आठ समयोंके भीतर विभक्त होते हैं। उनमें से प्रत्येक समयमें प्राप्त होनेवाले परमाणुओंकी जो विधि आगममें बतलायी गयी है उसके अनुसार पहली गुणहानिके प्रथम समयमें ५१२, दूसरेमें ४८०, इस प्रकारसे ३२-३२ कम होते हुए ८ वें समयमें २८८ परमाणु प्राप्त होंगे। पुनः दूसरी गुणहानिका प्रारम्भ होगा। पहलीकी अपेक्षा दूसरीमें प्रतिसमय ३२ के आधे अर्थात् १६-१६ परमाणु कम होकर प्राप्त होंगे। तदनुसार पहले समयमें २५६, दूसरे समयमें २४० । इस प्रकार १६-१६ कम होते हुए ८ वें समयमें १४४ परमाणु रहेंगे। पुनः तीसरी गुणहानिका प्रारम्भ होगा। उसमें १६ के आधे अर्थात् ८-८ कम होते हुए परमाणु रहेंगे। तदनुसार पहले समयमें १२८, दूसरेमें १२० इस प्रकार आठवें समयमें ३२ कर्म-परमाणु रहेंगे। पुनः चौथी गुणहानिका प्रारम्भ होगा। इसमें तीसरेसे आधे अर्थात् ४-४ कर्म-परमाणु प्रतिसमय कम-कम होकर रहेंगे। तदनुसार पहले समयमें ६४, दूसरेमें ६०, इस प्रकार कम होते हुए आठवें समयमें ३६ कम-परमाणु रहेंगे। पुनः पाँचवी गुणहानि प्रारम्भ होगी। इसमें चौथीके ४ की अपेक्षा आधे अर्थात् २-२ कम-परमाणु प्रतिसमय कम होंगे। तदनुसार पहले समयमें ३२, दूसरेमें ३०, इस प्रकारसे आठवें समयमें १८ कर्म-परमाणु रहेंगे। पुनः छठी गुणहानि प्रारम्भ होगी। इसमें पाँचवीं के २ की अपेक्षा आधे अर्थात् १-१ ही कम होकर प्रतिसमय परमाणु रहेंगे। तदनुसार पहले समयमें १६, दूसरे में १५ इस प्रकार एक-एक कम होकर आठवें समयमें ९ कर्म-परमाणु रहेंगे। - इस प्रकार बन्ध और उदय दोनोंकी अपेक्षा ४८ समयोंमें प्राप्त होनेवाले परमाणुओंकी अंक-संदृष्टि इस प्रकार होगी
षष्ट
चतुर्थ । गुणहानि
पंचम गुणहानि
१ २
- प्रथम गुणहानि ५१२ ४४०
द्वितीय गुणहानि २५६ २४०
तृतीय गुणहानि १२८ १२० ११२
६४ ६० ५६
२४०
गुणहानि १६ १५ ४
३२ ३० - २८
४४८
२२४
४१६
२०८
१९२ . ९६
६
३५२
१७६
८८
४५
५४४ १६००
७२ ८००
३६ ४००
१८ २००
__३२००
१०.
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