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________________ प्रकृतिसमुत्कीर्तन नास्ति-स्वरूप है, तातें एक ही बार द्रव्य अस्ति ऐसा अवक्तव्य है ४ । स्यादस्ति अवक्तव्यम्स्यात् कथंचित् प्रकार अपने चतुष्टयकरि एक ही बार अपने परके चतुष्टयकी अस्तिनास्तिता अस्ति द्रव्य अस्तिवंत है, पर अवक्तव्यं अवक्तव्य है । यद्यपि अपने चतुष्टयकरि द्रव्य अस्ति है, तथापि जब द्रव्य अस्ति ऐसा कहिए, तब 'अस्ति' इस एकान्त वचनकरि 'नास्ति' की अभाव होइ है। द्रव्यका अस्तिनास्तिस्वरूप है, यातें द्रव्य अस्ति ऐसा अवक्तव्य है । अरु यद्यपि एक ही काल अपने परके चतुष्टयकी अस्तिनास्तिकरि अस्तिवन्त है, तथापि एक ही बार अस्तिनास्तिकरि अस्तिवन्त है द्रव्य जैसा अवक्तव्य है, जाते वचन-विलास क्रमवान् है । जु कोई पूछै कि अपनी अस्तिताकरि तो द्रव्य अस्तिवन्त है, परकी नास्तिता करि अस्तिवन्त क्यों संभवै ? उत्तर-जैसे पटकी नास्तिताकरि घटको अस्तित्व है. जो घटविर्षे पटरूप नाही. तो घटका अस्तित्व है । जो पट विर्षे घट होइ तो घट-पट एक ही वस्तु होइ ? यातै परकी नास्तिताकरि अस्तिवन्त द्रव्य कहा। इस ही तैं करि अगलैं व्याख्यानमें भी परचतुष्टयकरि द्रव्य अस्ति जानना। तातै अपने चतुष्टयकरि अपेक्षा एकान्तताकरि अरु एक ही बार अपने परके अस्तिनास्तित्वकरि द्रव्य अस्ति ऐसा वक्तव्य है, स्यात् नास्ति अवक्तव्यं स्यात् कथंचित् प्रकार परके चतुष्टयकरि अरु एक ही अपने परके चतुष्टयकी अस्तिताकरि नास्ति द्रव्यं-द्रव्य नास्तिवन्त है, पर अवक्तव्यं अवक्तव्य है । यद्यपि परस्वरूपकरि द्रव्य नास्ति है, तथापि जब नास्ति ऐसा कहिए, तब वचन एकान्तता करि अस्तिस्वभावका अभाव हो है। तात द्रव्य नास्ति ऐसा अवक्तव्य है । अरु यद्यपि एक ही काल अपने परके स्वरूपकी अस्ति-नास्तिताकरि द्रव्य नास्तिवन्त है, तथापि एक ही बार अस्तिनास्तिता करि नास्ति ऐसा अवक्तव्य है। यहाँ कोई पूछ कि परकी नास्तिताकरि तो नास्ति द्रव्य है, अपने अस्तिताकरि नास्तिवन्त क्यों बनै ? जैसे घट अपनी अस्तिताकरि नास्ति है जो घट विर्षे अपने स्वरूपका अस्तित्व है तो घटविपटका अभाव है । अरु जो घटविर्षे अस्तित्व न होय तो पटस्वरूपकरि घट नास्ति ऐसा न होय । यात अपनी अस्तिताकरि द्रव्य नास्ति जानना। इस ही नयकरि अगले व्याख्यानमें भी अपने चतुष्टयकरि द्रव्य नास्ति जानना, तातै परचतुष्टयकी अपेक्षा एकान्तताकरि अरु एक ही बार अपने परके चतुष्टयकी अस्ति-नास्तिताकरि द्रव्य नास्ति ऐसा अवक्तव्य है ६। स्यात् अस्तिनास्ति अवक्तव्यं-स्यात् कथंचित् प्रकार अपने चतुष्टयकरि अरु परके चतुष्टयकरि अरु एक ही बार अपने परके चतुष्टयकी अस्ति नास्तिताकरि अस्तिताकरि अस्ति, नास्तिताकरि नास्ति द्रव्य अस्तिनास्तिवन्त है। पर अवक्तव्यं अवक्तव्य है। यद्यपि अपने स्वरूपकरि द्रव्य अस्तिनास्ति है, तथापि जब अपने स्वरूपकरि अस्तिनास्ति ऐसा कहिए तब एकान्त वचनतें पर स्वरूपकरि अस्तिनास्तिका अभाव है। यातें अपने स्वरूपकरि द्रव्य अस्ति नास्ति अवक्तव्य है । अरु यद्यपि पर स्वरूपकरि द्रव्य अस्ति नास्ति है, तथापि जब पर स्वरूपकरि द्रव्य अस्तिनास्ति ऐसा कहिए है ते एकान्त वचनते पर स्वरूपकरि अस्तिनास्तिका अभाव है। यातें पर स्वरूपकरि द्रव्य अस्तिनास्ति ऐसा अवक्तव्य है । अरु यद्यपि एक ही काल अपने परके स्वरूपकी अस्तिनास्तिताकरि द्रव्य अस्ति नास्ति है, तथापि जब अपने परके स्वरूपते अस्तिनास्ति ऐसा कहिए, तब एक ही बार अपने परके स्वरूपकी अस्तिनास्तिता करि द्रव्य अस्तिनास्ति ऐसा अवक्तव्य है। तातें अपने स्वरूपकी अपेक्षा एकान्तता करि अरु पर स्वरूपकी अपेक्षा एकान्तता करि, अरु एक ही बार अपने पर स्वरूपकी अस्तिनास्तिता करि द्रव्य अस्तिनास्ति ऐसा अवक्तव्य है। यह सप्तभंगी वाणीका व्याख्यान परद्रव्यकी अपेक्षा जानना। अरु एई सप्तभंग द्रव्य-पर्यायकी अपेक्षा एक द्रव्यमें साधै हैं-जैसे सुवर्ण अपने पर्यायकी अपेक्षा सप्तभंगरूप है। जो समय सुवर्ण कंकणपर्याय धारथौ है तब कंकण द्रव्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004239
Book TitleKarmprakruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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