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आशीर्वचन
मानव जीवन में कर्म की सकाम निर्जरा के लिए उपकारी ऋषि महर्षि मुनिजनों ने अनेक आलंबन बताए हैं । उन में ज्ञान की साधना एवं रचना सर्वोत्तम आलम्बन है । स्वाध्याय नाम के आभ्यन्तर तप से अत्यन्त आत्म-शुद्धि व बहुत ही सकाम निर्जरा होती हैं। बिना स्वाध्याय के ज्ञान की उपलब्धि असंभव ही है । स्वाध्याय के सागर में डुबकी लगा कर ही विचारों के सुन्दर मोती प्राप्त किए जा सकते हैं । स्वाध्याय ही ज्ञान के आलोक में ले जाता है ।
स्वाध्याय के वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्म कथन ये पाँच प्रकार हैं । इनके माध्यम से ही ज्ञान के प्रकाश को पाया जा सकता है ।
गीतार्थ गुरुवर के पास बैठ कर विनय-पूर्वक द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, चरितानुयोग एवं चरणकरणानुयोग, इन सब का श्रवण व चिंतन आदि करने से महान् कर्म निर्जरा होती है ।
पांचों प्रकार के स्वाध्याय से श्रुतधर्म और चारित्र धर्म की संयम धर्म में बहुत पुष्टि होती है। कहा भी है
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