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योग शास्त्र
[રશ્ન
रागद्वेष का त्याग करना चाहिए ।
प्राणी को मनोज्ञ - सरस विषयों पर राग होता है तथा अमनोज्ञ, नीरस विषयों पर द्वेष होता है । पांचों इन्द्रियों के प्रियअप्रियों को देख कर भी निर्लेप - अनासक्त रहना चाहिए ।
इस प्रकार अपरिग्रह व्रत का आकांक्षी साधु तथा श्रावक निर्मोही बन कर आत्म कल्याण कर सकता है ।
पांच महाव्रतों की ५ - ५ भावना सम्बन्धी श्लोक :भावनाभिर्भावितानि पंचभिः पंचभिः क्रमात् । महाव्रतानि नो कस्य साधयन्त्यव्ययं पदं ॥ २५॥ अर्थ :- ५ - ५ भावनाओं से भावित पंच महाव्रत किस व्यक्ति को अव्यय पद (मोक्ष) की प्राप्ति नहीं कराते ।
प्रथम महाव्रत की भावनाएं :
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मनो गुप्त्येषणा दानेर्याभिः समितिभिः सदा । द्रष्टान्नपानग्रहणेनाहिंसां भावयेत्सुधीः ॥२६॥
अर्थ :- १. मनोप्ति २. एषणा समिति ३. आदानसमिति ४. ईर्या समिति ५ देख कर अन्न जल ग्रहण करना - बुद्धिमान् व्यक्ति इन पांचों भावनाओं से अहिंसा व्रत की सुवासित करे । द्वितीय महाव्रत की भावनाएं :
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हास्य लोभ भय क्रोध प्रत्याख्यानै निरंतरं ।
आलोच्य भाषणेनापि भावयेत् सूनृतव्रतं ॥२७॥ अर्थ :- १-४ हास्व लोभ, भय तथा क्रोध का प्रत्याख्यान ५ विचार पूर्ण भाषण ( संभाषण ) इन ५ भावनाओं के द्वारा सत्य व्रत को भावित करना चाहिए ।
तृतीय महाव्रत की ५ भावनाएं :आलोच्यावग्रहाच्ञाऽभीक्ष्णावग्रहं याचनन् । एतावन्मात्रनेवंत, दित्यावग्रह धारणम् ॥ २८ ॥ समान धार्मिकेभ्यश्च तथावग्रह याचनम् । अनुज्ञापितपानान्ना शनमस्तेय भावनाः ॥ २६ ॥
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