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सच ! यह हास्य हास्य न रहा, गंभीर चिंतन के रूप में प्रकट हुआ। - हमें यह विचार भी न था कि योग शास्त्र का प्रकाशन होते होते मुनि श्री जो अनेक ग्रन्थों को रचना कर चुके होंगे। अस्तु...
विद्वान मनि जो के लव तथा बहन १५ ग्रन्यों का प्रकाशन अब वेग से हो रहा है ।
लेखक मुनिवर्य का परिचय देने की तो आवश्यकता ही नहीं है। वे एक सुशिक्षित, सभ्य मिलनसार, समन्वयवादी मुनिराज हैं । उनका व्याकरण अलंकार, साहित्य, काव्यकोष, छंदस्, न्याय, दर्शन, आगम, षट्दर्शन, ज्योतिष आदि विषयों पर समान आधिपत्य है । आपने प्राचीन न्याय तथा दर्शन शास्त्र का विशेष अध्ययन किया है । जो कि मनि जी के ग्रंथों के मध्य में दिए गए तर्कों से स्पष्ट ध्वनित होता है।
__ कृति से कृतिमान् की पहचान हो यहो अधिक उपयुक्त है। मनि जी लेखक तथा विद्वान तो हैं हों, प्रखर व्याख्याता तथा आधुनिक चिंतक भी हैं । पुरानो निष्प्राग रूढ़ियों को मुनि जो अपनी शैली में कोसते हैं।
प्रवचन में नितांत व्यावहारिक परम्पराओं के विरुद्ध उनका स्वर सदैव मुखरित रहा है। वे व्यवहार के माय निश्चय के भो पक्षपाती हैं। वे परम्परागत व्यवहार में निश्चय के दर्शन चाहते हैं। जिससे प्रत्येक धर्म क्रिया सार्थक हो सके । उनके चितन में नवीनता के साथ विविधता है। विचारों में तन्मयता है तथा संयम में एक रसता है। वे एक स्पष्ट वक्ता हैं, जिनको ओजस्वो वाणो को गूंज प्रत्येक समाज में युग-२ तक रहता है। उनको मधुर शैली, स्पष्ट भाषा तथा विश्लेषग श1 को श्रोता हो जान सकता है। वर्तमान में 'कुछ इधर को कुछ उधर को लेकर सुनने वाले वक्ता तो समाज में बहुत हैं। परन्तु मनि जो जैसे चितक एवं वक्ता की छाप समाज पर कुछ और हो पड़ती है ।
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