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चित्र देखते ही राम पहचान गए,
यह अन्य स्त्रियों के ईर्ष्यालु स्वभाव का परिपाक है। अतः वे कुछ भी उपालंभ दिए बिना वहाँ से चले गए। इसके पश्चात् भी
वे सीता के लिए कोई भी दुर्भाव लाए बिना पहले की तरह स्वस्थ रहने लगे। किंतु सपत्नियों ने अपनी दासियों द्वारा सीता के इस काल्पनिक दोष को लोगों में प्रचारित किया। प्रायः ऐसी अफवाएँ जल
में गिरे तैल बिंदु की भाँति चारों दिशाओं में
शीघ्र ही फैलती है। अतः स्थान-स्थान
पर सीता के विषय में चर्चाएँ होने लगी ।
जैनेतर रामायणनों में यह दोषारोपण, एक
रजक धोबीद्वारा किया गया था, ऐसा उल्लेख है।
पुष्प वाटिका में राम और सीता ।
वसंतऋतु का आगमन होने पर राम ने सीताजी से विनोद के लिए महेंद्रोदय नामक पुष्पवाटिका में जाने के लिए कहा। सीता ने कहा कि उन्हें भगवान की पूजा का दोहद उत्पन्न हुआ है। इसलिए उन्होंने रामचंद्रजी से पुष्पवाटिका को विविध प्रकार के पुष्पों से माली द्वारा सज्ज करने के लिए कहा। रामचंद्र ने वाटिका सजवा कर विविध पुष्पों से भगवान की पूजा करवाई। इसके पश्चात् वे सीताजी को लेकर महेंद्रोदय वाटिका में गए। वहाँ पर सीताजी ने नगरजनों की विचित्र क्रीडा एवं अरिहंत भगवान की पूजा से व्याप्त वसंतोत्सव देखा। उसी समय सीताजी की दक्षिण आँख फरकने लगी। जब उन्होंने राम से इस विषय में कहा, तो उन्होंने कहा कि यह अशुभसूचक संकेत है।
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सीताजी बोली, "क्या मेरा अशुभ भाग्य राक्षस द्वीप में रहने से भी समाप्त नहीं हुआ ? आपके वियोग से अधिक दुःखद मेरे लिए क्या हो सकता है ?" राम ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा, "हे देवी! आप खेद मत कीजिये सुख एवं दुःख शुभाशुभ कर्मों के आधीन है। किए हुए कर्म, हे देवी! भुगतने ही पडते हैं। अतः आप राजप्रासाद जाईये। वहाँ प्रभुपूजा, सुपात्र दान आदि में तत्पर रहिए। इससे अशुभ कर्मों का नाश हो जाएगा।
अयोध्या में बनती घटना का तादृश वर्णन करनेवाले विजय, सुरदेव आदि गुप्तचर एक दिन रामचंद्र के समक्ष आकर बद्धांजली मुद्रा में खड़े हुए वे इतनी क्षोभित मनःस्थिति में थे कि पत्ते के समान थर-थर काँप रहे थे। राम ने उनसे कहा, “आप लोगों को अभयदान है जो घटना आपने देखी है, सुनी है, उसका विवरण कीजिये।" उन अधिकारियों का
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