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आशालिका विद्या के
मुँह में प्रवेश करता हनुमान
अपने कुल का विनाश न हो, इसके लिए बिभीषण ने किले के ऊपर, आशालिका नामक एक विद्या की स्थापना की थी। वह कालरात्रि के समान भयंकर व उसके चारो ओर विकराल ज्वालाएँ थी। भयानक सर्प की भाँति फुत्कार करती यह शक्ति सदैव अपना मुख खोलकर खड़ी रहती। वह किसी आगंतुक को नगर में प्रवेश करने नहीं देती। यदि कोई नगर में प्रवेश करने का प्रयत्न करता, तो वह उसे खा जाती। लंका की सीमा पर हनुमान का सामना उस आशालिका नामक महाशक्ति के संग हुआ। उस शक्ति ने कहा, "हे वानर तू कहाँ जा रहा है ? मैं बहुत क्षुचित हूँ। कहीं तुझे विधि ने मेरा भोजन बनने हेतु तो यहाँ नहीं भेजा है ?" इन उपहासजनक उद्गार के साथ जब उस विद्या ने अपना भयंकर मुख खोला, तब हनुमान ने अपनी गदा सहित उसके मुख में प्रवेश किया एवं जिस प्रकार काले घने मेघों के मध्य से तेजस्वी सूर्यबिंब बाहर निकलता है, उसी प्रकार उस महाभयंकर विद्या का उदर चीरकर बाहर निकले।
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