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________________ अनुज लक्ष्मण में है। वह अकेला ही सीता को मुक्त करा सकता है। लक्ष्मण तुरंत बोले, "कौन है यह रावण जिसने सियार की भाँति कपट किया है ? कहाँ है वह रावण जिसने क्षात्रधर्म को कलंकित किया है ? मैं तो उसका मस्तक छेद कर क्षात्रधर्म को पुनः प्रकाशमय बनाऊँगा । आप समस्त केवल इस महानाट्य के साथी बनेंगे !"" जांबवानजी ने लक्ष्मण से कहा, “आप अकेले ही यह कर सकते हैं किंतु अनंतवीर्य मुनि ने हमें बताया है कि जो कोटीशिला उठाएगा, वह ही रावण की हत्या करेगा। अतः आप हमारे साथ चलें व एक बार कोटीशिला उठाकर हमें प्रतीति करवाईये।" जांबवानजी की बात लक्ष्मण ने स्वीकारी व वे आकाशमार्ग से लक्ष्मण को कोटीशीला के समीप ले आये। लक्ष्मण ने एक लता कि भाँति कोटीशिला अपने भुजाओं में उठाई। इसके बाद जांबवानजी लक्ष्मण के साथ पुनः किष्किंधापुरी पधारे। एक वृद्ध पुरुष ने कहा कि, "युद्ध में प्राणहानि एवं वित्तहानि अटल है । अतः जहाँ तक हो सके, युद्ध को टालना चाहिये नीतिकारों का कहना है कि युद्ध के पूर्व एक संदेशवाहक दूत को शत्रुपक्ष में भेजना चाहिये। यदि संदेशवाहक से ही प्रयोजन सिद्ध हो जाता है तो युद्ध के आरंभ का क्या प्रयोजन है ? हम भी एक दूत लंका भेजें, वह दूत सबसे पहले विभीषण के साथ मंत्रणा करेगा, क्योंकि राक्षस वंश का होते हुए भी विभीषण नीतिवान है। वह सीताजी की मुक्ति कराने के लिए रावण को समझा सकता है। यदि रावण उसकी बात नहीं मानता हैं, . तो संभव है कि वह हमारे पक्ष में आ जाएँ ।” वृद्ध पुरुष के सूचनानुसार सुग्रीव ने राम की अनुमति लेकर श्रीभूतिद्वारा हनुमानजी को बुलाया । सुग्रीव का संदेश मिलते ही हनुमानजी त्वरित किष्किंधापुरी पधारे सुग्रीव ने रामचंद्रजी से कहा, "पवनंजय के पुत्र हनुमान अतुल बलशाली एवं विनयशील हैं आपत्ति के समय ये सदैव मेरे मित्र रहे हैं।” सुमित्र के विषय में शास्त्रकारों ने कहा है 1 शुचित्वं त्यागिता शौर्यं सामान्यं सुखदुःखयोः । दाक्षिण्यं चानुरक्तिश्च सत्यता च सुहृद्गुणाः । Jain Education International 59 पवित्रता, त्याग, शौर्य, समत्व, दाक्षिण्यता, अनुराग और सत्य, सुमित्र के गुण हैं। हनुमानजी में ये सारे गुण एकत्रित हुए हैं। सीता की शोध के लिए इनसे ज्यादा योग्य कोई नहीं है। अतः आप इन्हें ही लंकागमन का आदेश दीजिये। हनुमानजी ने उत्तर में कहा, “मैं तो एक साधारण वानर हूँ, किंतु वानरराज सुग्रीव को मेरे प्रति प्रगाढ स्नेह होने के कारण वे अकारण मेरी स्तुति कर रहे हैं। उनकी सेना में मुझ समान ही नहीं, किंतु मुझसे बढ़कर शक्तिशाली अनेकानेक सुभट हैं। यद्यपि आप आदेश देते हैं, तो मैं सत्त्वर लंकागमन कर समस्त राक्षस वंश को उठाकर आपके समक्ष लाऊँ ? अथवा उस राक्षसराज को बंधुगण समेत उठा लाऊँ ? अथवा रावण का सपरिवार वध कर सीताजी को ले आऊँ ?" Gujar For Personal & Private रामद्वारा हनुमानजी को अंगुठी DILIC SONI telibrat
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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