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महापुरुष का मृत्यु हमारे कारण हुआ। धिक्कार है हमें !" इस प्रकार आत्मनिंदा करते करते वे दोनों देव स्वर्ग में गए।
लक्ष्मणजी का अकस्मात मृत्यु देखकर अंतःपुर की स्त्रियों ने अपने बाल बिखेर दिएव अपने मस्तक कूटकूटकर विलाप करने लगी।
रामचंद्रजी दौडकर वहाँ आए व शोकाकुल स्त्रियों से कहने लगे - "अरे! आप सब किस अमंगल की आशंका से रुदन कर रही हैं? यहाँ कौनसा प्रलय आया है कि आप इस तरह से रो रही हैं। देखिये, मैं अभी जीवित हूँ और यहाँ पर निश्चेष्ट यह मेरा अनुज भी जीवित है। कोईदुष्ट ग्रह अथवा रोग इसे पीडित कर रहा है - जिसका प्रतिकार औषध द्वारा अथवा पूजापाठद्वारा हो सकता है। राजवैद्य व ज्योतिषियों को सत्वर बुलाईयो"
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लक्ष्मण की मृत्यु इस प्रकार केश बिखेरती अत्यंत करुण विलाप करनेवाली उन स्त्रियों का दृश्य देखते ही लक्ष्मणजी शोकाकुल होकर बोले, “अरे ! विधि की यह कैसी विचित्रता है? मेरे प्राणप्रिय भ्राता का मृत्यु यकायक कैसे हो गया ? यमराज ने यह कैसा कपट किया..." आत्यंतिक दुःखाघात से हताश लक्ष्मणजी जब ऐसे विचार कर रहे थे, तब यकायक उनके प्राणपखेरु उड गए। एक मूर्ति की भाँति वे निश्चल, निश्चेष्ट बनें । मृत लक्ष्मण को देखकर अत्यंत दुःखी पश्चात्ताप करते हुए वे देव एकदूसरे से कहने लगे "हमारे हाथों यह भयानक कृत्य कैसे हो गया ? हाय ! विश्वके आधारभूत इस
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