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________________ करती है। छठ्ठे गुणस्थानक का संकलित काल देशोनपूर्वक्रोड वर्ष है । अन्तर्मुहूर्त में झुले की तरह छट्ठे सातवें गुणस्थानक पर आत्मा नीचे ऊपर झुलती है। दोनों गुणस्थानक का काल कम से कम १ समय और ज्यादा से ज्यादा अन्तर्मुहूर्त है । अप्रमत्त भाव से साधु जीवन का पालन करती है । इसका कुल काल अन्तर्मुहूर्त ही है । (८) आठवां गुणस्थानक :- इस गुणस्थानक का नाम अपूर्वकरण है. 1. यहां पर आत्मा अपूर्व पुरुषार्थ करके मोहनीय कर्म का उपशम या क्षय करने के लिये तत्पर बनती है। इसमें कदापि न हुए हो, ऐसे अपूर्व स्थितिघात, अपूर्व रसघात, अपूर्व गुणश्रेणि, अपूर्व गुणसंक्रम व अपूर्व स्थितिबन्ध, ये ५ पदार्थ आत्मा करती है । इसका काल कम से कम १ समय ज्यादा से ज्यादा अन्तर्मुहूर्त होता है । इसका दूसरा नाम निवृत्तिकरण भी है। क्योंकि निवृत्ति यानी भिन्नता, करण यानी अध्यवसाय = आत्मपरिणाम = विचार, इस गुणस्थान में एक ही समय में भी अध्यवसायों में निवृत्ति = भिन्नता होती है । इसलिये इसे निवृत्तिकरण भी कहते हैं । इस गुणस्थान में एक ही समय में रही हुई आत्माओं के अध्यवसाय अलग अलग होते हैं । यहां से उपशम श्रेणी व क्षपकश्रेणी का प्रारंभ होता है । (९) नौवां गुणस्थानक :- इस गुण स्थानक का नाम अनिवृत्तिकरण, क्योंकि इस गुणस्थानक के प्रत्येक समय में प्रवेश पाने वाले सभी जीवों के अध्यवसायों की अनिवृत्ति = अभिन्नता = समानता होती है । इसका दूसरा नाम बादर सम्पराय भी है। बादर यानी स्थूल, सम्पराय यानी कषाय जहां पर होता है, वह बादर संपराय गुणस्थानक कहलाता है । आगे दसवें गुणस्थानक में सूक्ष्म कषाय होता है । इसका काल कम से कम १ समय व उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त होता हैं । (१०) दसवां गुणस्थानक :- इसका नाम सूक्ष्म संपराय है । यहां पर लोभ मोहनीय कर्म का अत्यन्त सूक्ष्म रस उदय में होता है, जिसे चित्रमय तत्वज्ञान Jala Education International Use Only ४६ www.jainetfbrary.org
SR No.004222
Book TitleChitramay Tattvagyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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