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________________ भव्य भी होता हैं और अभव्य भी । जिस जीव में मोक्ष में जाने की योग्यता होती है, वह भव्य जीव कहलाता है । जिस जीव में मोक्ष में जाने की योग्यता नहीं होती, वह अभव्य कहलाता है । अनन्त भव्य जीव ऐसे भी होते हैं कि वे कभी भी अव्यवहार राशि से बाहर नहीं निकलते, लेकिन वे भव्य जीव कहलाते हैं । विकास क्रम वाले चित्र में प्रथम विभाग में केसरी रंग से सूक्ष्म अव्यवहारराशि निगोद दिखाई है, उसके बाद बादर के विभाग में यानी सूक्ष्म अव्यवहारराशि में से निकल कर जीव बादर निगोद मूली वगैरह में, उसके बाद पृथ्वीकाय, अप्काय, तेऊकाय, वायुकाय, प्रत्येक वनस्पतिकाय, विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय आदि में क्रम से या उत्क्रम से उत्पन्न होता हैं | कोई मरुदेवा माता की तरह एक भव प्रत्येक वनस्पति का करके मनुष्य भव में आकर मोक्ष में चला जाता हैं । तो कोई अनन्त पुद्गल परावर्त तक ८४ लाख जीव योनि में भटकता रहता हैं, व्यवहार राशि में आने के बाद भी आध्यात्मिक उत्क्रान्ति निश्चित नहीं है, यह जीव के तथाभव्यत्व पर आधारित रहती है। अनेक भवों में भटकता हुआ जीव जब चरमावर्त में आता है, तब से वह विकास के अभिमुख होता हैं । सहजभाव से पाप प्रवृत्ति व पापवृत्ति घटने लगती है । जिससे तीन गुण प्रकट होते हैं। चरमावर्त के ३गुण (१) दुःखी जीव पर अत्यन्त दया करता है | वह दूसरे के दुःख में निःस्वार्थ भाव से सहानुभूति बताता है । यदि उसके दुःख दूर करने की शक्ति न हो, तो भी उसकी भावना दया की अवश्य होती है । भूखे को रोटी, प्यासे को पानी व असहाय को सहायता करने की भावना रहती है । एवं पापों में फंसे हुए जीवों को पाप मुक्त करने की स्व पर भाव दया भी रहती है। (२) गुणी आत्माओं के ऊपर द्वेष नहीं होता । जैसे कोई दान देता है, तो उसे यह नहीं होता कि क्या दान देता है ? खुद ने माया कपट करके कमाया, अब अच्छा दिखाने के लिये दान देता है । खुद में दान गुण आदि न हो, यह हो सकता है, परंतु दानी आदि गुणी पर द्वेष नहीं करता। चित्रमय तत्वज्ञान ४१ Jain Education International For Personal & Private Use Only w.jainelibrary.org
SR No.004222
Book TitleChitramay Tattvagyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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