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________________ आदि व बीच में सर्वार्थ सिद्ध विमान होने से अनुत्तर के ५ भेद होते हैं । अतः कल्पातीत के भेद ९+५=१४ होते हैं । वे सभी पर्याप्त व अपर्याप्त होते हैं । इसलिये कल्पातीत के कुल भेद १४+२=२८ भेद हए । इस प्रकार वैमानिक के कुल भेद ४८+२८= ७६ हुए। इस प्रकार देव के कुल भेद :- भवनपति के कुल भेद ५० + व्यंतर के कुल भेद ५२ + ज्योतिष के कुल भेद २० + वैमानिक के कुल भेद ७६= कुल १९८ देव के भेद होते हैं। संसारी जीव के कुल भेद :- स्थावर के २२ भेद + द्वीन्द्रिय के २ भेद + त्रीन्द्रिय के २ भेद + चतुरिन्द्रिय के २ भेद + पंचेन्द्रिय तिर्यंच के २० भेद + नारक के १४ भेद + मनुष्य के ३०३ भेद + देव के १९८ भेद = ५६३ भेद हुए। सावधानी: जीवों के भेद जानकर जीवों की हिंसा के त्याग का संकल्प करना चाहिए। चित्रमय तत्वज्ञान ३५ - Jals education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004222
Book TitleChitramay Tattvagyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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