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________________ (५) परिग्रह परिमाण व्रत :- धन, दौलत, मकान, पशु व नोकर आदि का परिमाण करना । (३) गुण व्रत :- जिनके पालन से ५ अणुव्रतों को गुण यानी लाभ . होता हो, वे तीन होते हैं । (१) दिक्परिमाण :- चारों दिशा में जाने आने की दूरी किलोमिटर में निश्चित करना, उसके बाहर न जाना । अथवा भारत के बाहर न जाना । (२) भोगोपभोग परिमाण :- खाने पीने पहनने आदि वस्तुओं का परिमाण तय करना । (३) अनर्थ दंड विरमण :- जीवन जीने में बिन उपयोगी पापकर्म का बन्ध करने वाली वस्तुओं का त्याग करना । (४) शिक्षाव्रत :- जिनके पालन से ५ अणुव्रत क्रियान्वित होते है। वे ४ होते हैं। (१) सामायिक व्रत :- कम से कम ४८ मिनट तक हिंसादि का त्याग कर समभाव में रहना । (२) देशावकाशिक व्रत :- ओकासणा करके ओक दिन में ८ सामायिक व दो प्रतिक्रमण करना । (३) पौषध व्रत :- दिन या रात या दिनरात का पौषध करना । (४) अतिथि संविभाग :- उपवास के साथ दिन रात का पौषध करके गुरुमहाराज जो जो वस्तु ग्रहण करे, वेही दुसरे दिन अकासणे में वापरना । (३) सर्वविरत अन्तरात्मा : जो आत्मा सम्यग्दर्शन पर्वक पांच महावतों का पालन करती है | जैसे धन्ना अनगार वगैरह । पांच महाव्रत इस प्रकार है। (१) प्राणातिपात विरमण महाव्रत :- सूक्ष्म या बादर किसी भी जीव की हिंसा नहीं करना, हिंसा नहीं करवाना व हिंसा करने वाले की अनुमोदना नहीं करना । चित्रमय तत्वज्ञान २२ Jain Education International Jain Education International For Personal & Private Use Only For Personal & Private Use only www.jainelibrary.org
SR No.004222
Book TitleChitramay Tattvagyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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