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________________ दूसरी ओर ८ विजय है । दो - दो विजय के बीच मे ओक - ओक नदी है । इसलिये जाना आना नहीं होता है । इस प्रकार महाविदेह क्षेत्र में कुल ३२ विजय होती है। (५) उसके बाद नीलवंत पर्वत के केशरी द्रह से नारीकान्ता नदी निकल कर रम्यक् क्षेत्र से बहती हुई गोलाकार माल्यवंत पर्वत से मूडकर लवण समुद्र में गिरती है और रुक्मी पर्वत के महापुंडरिक द्रह से नरकान्ता नदी निकल कर रम्यक् क्षेत्र में बहती हुई माल्यवंत पर्वत से मूडकर लवण समुद्र में गिरती है । (६) उसके बाद रुक्मी पर्वत के महापुंडरिक द्रह से रुप्यकला नदी निकल कर हिरण्यवंत क्षेत्र में बहती हुई गोलाकार विकटपाती पर्वत के पास मूडकर लवणसमुद्र में गिरती है और शिखरी पर्वत से सुवर्णकला नदी पुंडरिक द्रह से निकल कर औरवत क्षेत्र में बहती हुई गोलाकार विकटापाती पर्वत के पास मूड कर लवण समुद्र मे गिरती है । (७) उसके बाद शिखरी पर्वत पर रहे हुए पुंडरिक द्रह से पूर्व पश्चिम दोनों ओर हिमवत् के पद्म द्रह से निकलने वाली गंगा सिंधु की तरह ऐरवत क्षेत्र में बहती हई रक्ता व रक्तवती नदी लवण समुद्र में गिरती है। इस प्रकार जम्बू द्वीप में ७ पर्वत क्रमश: है | भरत वगैरह क्षेत्र लघु हिमवत् वगैरह पर्वतो से अंतरित है । जैसे कि (१) भरत क्षेत्र (२) लघुहिमवत् पर्वत (३) हिमवंत क्षेत्र (४) महा हिमवंत पर्वत (५) हरिवर्ष क्षेत्र (६) निषध पर्वत (७) मेरु पर्वत के, उत्तर दक्षिण में उत्तर कुरु देवकुरु, (८) महाविदेह क्षेत्र मेरु पर्वत के पूर्व पश्चिम में है (९) नीलवंत पर्वत (१०) रम्यक् क्षेत्र (११) रुक्मी पर्वत (१२) हिरण्यवंत क्षेत्र (१३) शिखरी पर्वत (१४) औरवत क्षेत्र इस प्रकार ७ क्षेत्र व ७ पर्वत है | १७० तीर्थंकर इस जम्बू द्वीप में १ भरत १ औरवत और १ महाविदेह क्षेत्र में ३२. विजय होती हैं । उनमें ही तीर्थंकर होते हैं । शेष में नहीं होते । घातकी खंड को उत्तर व दक्षिण में रहा हुआ ईषुकार पर्वत पूर्व व पश्चिम में | चित्रमय तत्वज्ञान १५ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004222
Book TitleChitramay Tattvagyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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