SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वीप में ही मनुष्य रहते हैं । इसलिये दोनों ओर ८, ८ लाख योजन पुष्कर वर द्वीपार्ध ८+८ = १६ लाख योजन प्रमाण है। इसलिये ढाई द्वीप १+४+८+१६+१६=४५ लाख योजन वाला मनुष्य लोक है। इसमें ही मनुष्य जन्म लेते हैं व मरते हैं। इसके बाहर मनुष्य का जन्म मरण नहीं होता । कोई देव अपहरण करके या सहायता करके मनुष्य को इन ढाई द्वीप के बाहर ले भी जाये, तो वहां मृत्यु नहीं होती, वापस ढाई द्वीप में लाने के बाद ही मृत्यु होती है । ढाई द्वीप के बाहर व्यवहार काल, अग्नि, सूर्य, चन्द्र आदि का परिभ्रमण वगैरह नहीं होता । जम्बू द्वीप तिर्यग् लोक के मध्य में थाली आकार का जम्बू द्वीप है । उसके दक्षिण में (१) भरत क्षेत्र है । उसके बाद पूर्व पश्चिम तक फैला हुआ वैताढ्य पर्वत भरत क्षेत्र को दक्षिणार्ध व उत्तरार्ध में बांट देता है । उसके बाद लघु हिमवत् पर्वत पूर्व पश्चिम में फैलकर दोनों ओर समुद्र में गया है। समुद्र के भीतर पश्चिम दिशा में दो दाढा एवं पूर्व दिशा में दो दाढा की आकृति के दो दो पर्वतीय भाग के रूप में पर्वत है । हरेक दाढा के ऊपर ७ अन्तद्वीप होते हैं। इसलिये २८ अन्तद्वीप हुए इसी प्रकार समुद्र के भीतर शिखरी पर्वत की भी ४ दाढायें है, उन पर २८ अर्न्त द्वीप होते हैं । इस प्रकार कुल ५६ अन्तद्वीप हुए। उस लघु हिमवत् पर्वत पर पद्मद्रह हैं । उसके पूर्व में गंगा नदी व पश्चिम में से सिन्धु नदी निकली है । वे क्रमशः उत्तरार्ध भरत, वैताढ्य पर्वत व दक्षिणार्ध भरत होकर लवणसमुद्र में गिरती है। इस प्रकार उत्तरार्ध भरत व दक्षिणार्ध भरत, ३ ३ खंडो में विभाजित हो जाने से भरत क्षेत्र के ६ खंड हो जाते हैं । चक्रवर्ती सम्पूर्ण भरत क्षेत्र पर राज्य करता है । इसलिये वह षट्खंडाधिपति कहलाता है। - (२) लघुहिमवत् पर्वत के उत्तर में हिमवत् क्षेत्र हैं । उसके मध्य में शब्दापाती गोलाकार पर्वत है । उसके उत्तर में पूर्व पश्चिम फैला हुआ महाहिमवत् पर्वत है । दक्षिण दिशा में से रहे हुए लघु हिमवत् पर्वत के ऊपर पद्मद्रह से रोहितांशा नाम की नदी उत्तर दिशा में निकलती है । वह शब्दापाती के पास से होकर बहती हुई पश्चिम दिशा में मूड कर | चित्रमय तत्वज्ञान Jain Education International For Personal & Private Use Only १३ www.jainelibrary.org
SR No.004222
Book TitleChitramay Tattvagyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy