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________________ होते हैं । (१) शुभ व (२) अशुभ । शुभध्यान :- देव, गुरु, भगवान की वाणी , आत्मा आदि पर मन स्थिर बनता है, तब शुभ ध्यान कहलाता है। अशुभध्यान :- कुदेव, कुगुरु, अधर्म जडद्रव्य आदि पर मन स्थिर बनता है । तब अशुभ - ध्यान कहलाता है । शुभ ध्यान कर्म का नाश करता है व पुण्यकर्म का उपार्जन करवाता है । अशुभ ध्यान पाप कर्म का बन्ध करवाता है। शुभ ध्यान के २ भेद होते हैं । १ धर्मध्यान व २ शुक्ल ध्यान (१) धर्मध्यान के ४ भेद (१) आज्ञाविचय :- इस प्रकार के हेतु तर्क आदि होते हुए भी अतीन्द्रिय पदार्थ, आत्मा, नरक व देवलोक, पुण्य, पाप, वीतराग देव आदि च मोक्ष वगैरह को हम देख नहीं सकते, किन्तु जिनेश्वर देव की आज्ञा = वाणी से उसका ज्ञान होता है और उसके अनुसार चलने से हमें मोक्ष की प्राप्ति होती है । हमारा कितना भाग्य का उदय है कि हमें श्रेष्ट आजा मिली है । इस प्रकार चिन्तन करने से आज्ञा विचय का धर्मध्यान होता है । जिस प्रकार गौतम स्वामी के १५०० साधु में से भगवान की वाणी = आज्ञा का चिन्तन करने से ५०० साधुओं ने भोजन करते हुए, ५०० साधुओं ने वाणी सुनते हुए व ५०० साधुओं ने प्रभु को देखते हुए केवलज्ञान प्राप्त कर लिया । (२) अपायविचय :- राग, द्वेष, क्रोध, मान आदि कितने भयंकर शत्र है ? उनसे आत्मा का कितना भयंकर नुकशान होता है ? इत्यादि चिन्तन करने से अपायविचय नाम का धर्मध्यान होता है। गुणसागर व शादी के लिये जाने वाले राजकुमार आदि ने अपायविचय ध्यान से केवलज्ञान प्राप्त किया । (३) विपाकविचय :- कर्म के मूल ८ भेद हैं उसके उत्तर भेद १२० है, उसके फल को जीव ही भुगतता है, इस प्रकार का चिन्तन करना चित्रमय तत्वज्ञान ६९ educator niemantona जा
SR No.004222
Book TitleChitramay Tattvagyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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