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द्वार आपके लिये खुले हैं । गर्भहत्यारिणी स्त्री की नजरों के सामने भोजन करने तक की मनाही है तो फिर उसके द्वारा बनाई हुई रसोई खाने की तो बात ही कैसे की जाय ? ___स्त्रियां गर्भहत्या करवा तो देती है लेकिन फिर पूरे जीवन भर पीड़ा पाती है। शरीर रोगों का घर और म्यूजियम बन जाता है । घर क्लेश और कलह की रणस्थली बन जाता है । संपूर्ण परिवार अशांति और दुःख की भीषण ज्वालाओं में झुलसता रहता है। ___ मातृत्व को पाँवतले रौंदने वाली स्त्रियाँ वैसे तो किसी ब्रह्मा की भी बात मानने वाली नहीं, तो हम किस खेत की मूली होते हैं ? इसलिये उनके लिये तो लिखना या कहना ही बेकार है । लेकिन फिर वही आवाज कानों से टकराती है 'जननी नी जोडी सरवी नहि जड़े रे लोल' कविता गुजराती में है, इसका आशय है - 'मैया की जोड़ी और न कोई' तब वापस माताओं की ममतामयी गोद में विश्वास उत्पन्न होता है और दिल पुकार उठता है नहीं... नहीं... । ____माँ तो माँ ही... ! सदा वात्सल्य और ममता के अथाह समन्दर को अन्तर में धरने वाली माताओं के प्रति श्रद्धा का भाव आज भी इस देश में ज्वलन्त है । 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी'...अरे स्वर्ग से भी सुन्दर और महान है - मेरी ममतामयी मैया' का नाद आज भी इस पवित्र भूमि से उठ रहा है और इसीलिये ये बातें लिखी जा रही है। जिनको पढ़कर अज्ञानता से भी जिस स्त्री ने यह पाप किया होगा वह आठ-आठ आँसू गिराये बिना नहीं रहेगी । उसका अन्तर रो उठेगा और अपने आप को धिक्कारेगा । रे ! हत्यारिणी !... अपने ही कलेजे के टुकड़े को तूने रौंद डाला ? संसार में आने से पहले ही उसका गला घोंट डाला...? क्या हक था तुझे जब किसी को जीवन देने की शक्ति नहीं थी तो मार डालने का ? कह ! क्या हक था...? इस प्रकार उसको पश्चात्ताप ही पश्चात्ताप होता रहेगा ।
इन बातों को पढ़ने - सोचने के बाद जो स्त्री निकट भविष्य में एबोर्शन करवाने के सपने बुनती होगी... विचारों में मशगूल होगी... उसकी कुंभकर्णी निद्रा टूटे बिना नहीं रहेगी और वह इस भयंकर पाप से स्वयं ही निवृत्त हो जायेगी। __अब जरा रुक जाइये... हृदय को मजबूत बनाइये... मन की आँखे खोलिये... अन्तरात्मा को जगाईये... और अब आगे पढ़िये...
(कच्चे मन और डरपोक व्यक्ति सावधान ! आगे खतरनाक मोड़ है !)
चलो... एबोर्शन केन्द्र में... बचाओ... बचाओ...!!
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