SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विउसीहे पुत्त-बहूहे कहाणगु 1. अभ्यास-48 विउसीहे पुत्त-बहूहे कहाणगु (विउसी) 6/1 वि विदुषी [(पुत्त)-(बहू) 6/1] पुत्रवधू का (कहाणग) 1/1 कथानक कहिं णयरि लच्छीदासु सेट्रि सेठ वट्टई बहुधण-संपत्तिए गविठ्ठ आसि भोगविलासहिं एव था लग्गु कयावि धम्मु घर्ष (क) 7/1 स किसी (णयर) 7/1 नगर में (लच्छीदास) 1/1 लच्छीदास (सेट्ठि) 1/1. अव्यय भली प्रकार से . (वट्ट) व 3/1 अक रहता (था) (त) 1/1 स वह . [(बहु) वि-(धण)-(संपत्ति) 3/1] बहुत धन-सम्पत्ति के कारण : (गविटठ) 1/1 वि अत्यन्त गर्वीला (अस) भूका 3/1 अक [(भोग)-(विलास) 7/2] भोगविलासों में अव्यय ही (लम्ग) भूकृ 1/1 अनि लगा हुआ (था) अव्यय कभी भी (धम्म) 2/1 अव्यय (कुण) व 3/1 सक करता है (था) (त) 6/1 स उसका (पुत्त) 1/1 अव्यय (एयारिस) 6/1 वि ऐसा (अस) व 3/1 अक है (था) (जोव्वण) 1/1 वि यौवन में (पिउ) 3/1 पिता के द्वारा (धम्मिअ) 6/1 वि धार्मिक (धम्मदास) 6/1 धर्मदास की (जहत्थनाम) 3/1 वि यथानामवाली (सीलवइ) 3/1 वि शीलवती (कन्ना) 3/1 कन्या के अव्यय (पुत्त) 6/1 पुत्र का ण कुणेइ तासु नहीं एयारिसु अत्थि जोव्वणि पिउएं धम्मिअहो धम्मदासहो जहत्थनामाए सीलवईए कन्नाए साथ सह पुत्तसु . 130 अपभ्रंश अभ्यास उत्तर पुस्तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004213
Book TitleApbhramsa Abhyas Uttar Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2011
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy