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अध्ययन २ उद्देशक १ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
यह सिद्धान्त त्रैकालिक है। भूतकाल में भी यह मार्ग था, वर्तमान में यही मार्ग है और भविष्य में भी यही मार्ग रहेगा। .... इस सिद्धान्त को समझे बिना अनन्त जीवों ने संसार में परिभ्रमण किया हैं वर्तमान में करते हैं
और भविष्यत् में भी करेंगे। अतः बुद्धिमानों का कर्तव्य है कि उपरोक्त सम्यग् मार्ग को ग्रहण करके अपनी आत्मा का कल्याण करें।
जइ वि य णगिणे किसे चरे, जइ वि य भुंजिय मासमंतसो । जे इह मायाइ मिज्जइ, आगंता गब्भाय णंतसो ॥९॥
कठिन शब्दार्थ - जइ - यदि, वि - भी, य- और, णगिणे (णिगिणे)- नग्न-वस्त्र रहित, किसे - कृश-दुबला पतला, चरे- विचरे, भुंजिय - भोजन करे, मास - एक मास, अंतसो - अन्ततः, आगंता - प्राप्त करता है, गब्भाय - गर्भवास को, णंतसो- अनंत काल तक ।
भावार्थ - जो पुरुष, कषायों से युक्त है वह चाहे नंगा और कृश होकर विचरे अथवा एक मास के पश्चात् भोजन करे परन्तु वह अनन्त काल तक गर्भवास को ही प्राप्त करता है ।
: विवेचन - क्रोध, मान, माया, लोभ रूपी कषाय से छूटकारा नहीं होता तब तक मुक्ति नहीं हो सकती है। जैसा कि कहा है -
नाशाम्बरत्वे न सिताम्बरत्वे, ... न तर्कवादे न च तत्त्ववादे। न पक्षपाताश्रयणेन मुक्तिः ,
कषायमक्तिः किल मक्तिरेव ॥ अर्थ - आशाम्बर अर्थात् आशा-दिशा ही अम्बर (कपडा है जिसके) उसको आशाम्बर अर्थात् दिगम्बर कहते हैं। दिगम्बरपने में अर्थात् वस्त्र रहित होकर नग्न फिरने से ही मुक्ति नहीं होती है इसी प्रकार सिताम्बर अर्थात् सफेद कपडा पहन लेने मात्र से मुक्ति नहीं है इसी प्रकार तर्कवाद और तत्त्ववाद से तथा एक पक्ष पकड लेने मात्र से मुक्ति नहीं है। किन्तु कषाय से छूटकारा पाना ही वास्तव में मुक्ति है। हिन्दी कवि ने भी कहा है - . काहे को भटकत फिरे, सिद्ध होवण के काज ।
राग द्वेष को छोड़ दे, भैय्या सुगम इलाज ॥ पुरिसो रम पाव-कम्मुणा, पलियंतं मणुयाण जीवियं। सण्णा इह काममुच्छिया, मोहं जंति णरा असंवुडा॥ १० ॥
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