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अध्ययन १ उद्देशक २
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जीव स्व रूप से काल की अपेक्षा नित्य है। जीव स्व रूप से काल की अपेक्षा अनित्य है। जीव पर रूप से काल की अपेक्षा नित्य है। जीव पर रूप से काल की अपेक्षा अनित्य है।
इस प्रकार काल की अपेक्षा चार भेद होते हैं। इसी प्रकार स्वभाव, नियति, ईश्वर और आत्मा के अपेक्षा जीव के चार चार भेद होते हैं। इस तरह जीव आदि नव तत्त्वों के प्रत्येक के २०-२० भेद होने से कुल १८० भेद होते हैं।
२. अक्रियावादी - अक्रियावादियों का कथन है कि- क्रिया की क्या जरूरत है केवल चित्त की पवित्रता होनी चाहिये। इस प्रकार ज्ञान से ही मोक्ष मानने वाले अक्रियावादी कहलाते हैं। अक्रियावादी के ८४ भेद होते हैं। यथा - ... जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष (पुण्य पाप का आस्रव में समावेश कर दिया गया) इन सात तत्त्वों के स्वः और परतः ये १४ भेद बनते हैं। इन चौदह को काल, यदृच्छा, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा, इन छह की अपेक्षा गुणा करने से ८४ भेद बन जाते हैं। जैसे - जीव स्वतः काल से नहीं है। जीव परतः काल से नहीं है। इस प्रकार काल की अपेक्षा जीव के दो भेद होते हैं। काल की तरह यदृच्छा आदि छह से गुणा करने पर १२ भेद हो जाते हैं । इन १२ को जीवादि सात तत्त्वों से गुणा करने पर ८४ भेद हो जाते हैं।
३. अज्ञानवादी - जीवादि अतीन्द्रिय पदार्थों को जानने वाला कोई नहीं है। न उनके जानने से कुछ सिद्धि ही होती है। इसके अतिरिक्त समान अपराध में ज्ञानी को अधिक दोष माना है और अज्ञानी को कम। इसलिये अज्ञान ही श्रेय रूप है ऐसा मानने वाले अज्ञानवादी हैं। अज्ञानवादी के ६७ भेद हैं। यथा
: जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन नव तत्त्वों के सद्, असद्, सदसद्, अवक्तव्य, सदवक्तव्य, असदवक्तव्य, सदसदवक्तव्य इन सात भङ्गों से ६३ भेद हुए और उत्पत्ति , के सद्, असद्, सदसद् और अवक्तव्य की अपेक्षा से चार भङ्ग हुए इस प्रकार ६७ भेद अज्ञानवादी के होते हैं।
जैसे - जीव सद् है यह कौन जानता है ? और इसके जानने का क्या प्रयोजन है ? . ४. विनयवादी - स्वर्ग, अपवर्ग आदि के कल्याण की प्राप्ति विनय से ही होती है। इसलिये विनय ही श्रेष्ठ है। इस प्रकार विनय को प्रधान रूप से मानने वाले विनयवादी कहलाते हैं।
विनयवादी के ३२ भेद हैं । यथा -
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