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भविष्य में भी करेंगे । वह मार्ग मैंने तीर्थंकर भगवान् से सुन रखा है और आप लोगों को सुनने की इच्छा है इसलिये मैं उस मार्ग का वर्णन करता हूँ इसलिये आप उसे ध्यानपूर्वक सुनें ।
विवेचन - प्रश्न सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन और सम्यक् चारित्र रूप मोक्ष का मार्ग है क्या इसका आचरण करके किन्हीं महापुरुषों ने मोक्ष प्राप्त किया है ?
उत्तर - इस मार्ग पर चल कर भूत काल में अनंत जीव संसार समुद्र को तिर गये, वर्तमान में ( महाविदेह क्षेत्र से ) संख्यात जीव तिर रहे हैं, भविष्यत् काल में फिर अनन्त जीव तिर जायेंगे। इस प्रकार तीर्थंकर भगवन्तों द्वारा कथित यह मार्ग तीनों काल में संसार सागर से पार उतारने वाला मोक्ष प्राप्ति का कारण भूत प्रशस्त भाव मार्ग है। .
पुढवीजीवा पुढो सत्ता, आउजीवा तहाऽगणी ।
वाउजीवा पुढो सत्ता, तणरुक्खा सबीयगा ॥७॥
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अध्ययन ११ 000000
कठिन शब्दार्थ- पुढो - पृथक्, सत्ता - सत्व, तणरुक्खा- तृण वृक्ष, सबीयगा- बीज पर्यंत । भावार्थ- पृथिवी जीव है तथा पृथिवी के आश्रित भी जीव हैं एवं जल और अग्नि भी जीव हैं तथा वायुकाय के जीव भी भिन्न भिन्न एवं तृण, वृक्ष, और बीज भी जीव हैं ।
अहावरा तसा पाणा, एवं छक्काय आहिया ।
यावर जीवकाए, णावरे कोइ विज्जइ ॥ ८ ॥
कठिन शब्दार्थ - अहावरा - इनसे भिन्न, तसा - त्रस, पाणा- - जीव, छक्काय- छह जीव काय, आहिया - कहे हैं, एयावए इतने ही हैं, अवरे इनसे भिन्न, विज्जइ होता है ।
भावार्थ - पूर्वोक्त पाँच और छठा त्रसकाय वाले जीव होते हैं। तीर्थंकर ने जीव के छह भेद बताये हैं । अतः जीव इतने ही हैं इनसे भिन्न कोई दूसरा जीव नहीं होता है ।
सव्वाहिं अणुजुत्तीहिं, मइमं पडिलेहिया ।
सव्वे अक्कंतदुक्खा य, अओ सव्वे ण हिंसया ॥ ९ ॥
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कठिन शब्दार्थ - अणुत्तीहिं- युक्तियों से, पडिलेहिया दुःख अप्रिय है, अओ - अतः ण हिंसया - हिंसा न करे ।
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पर्यालोचना करे, जाने, अक्कंतदुक्खा
के
भावार्थ - बुद्धिमान् सब युक्तियों के द्वारा इन जीवों का जीवपना सिद्ध करके ये सभी दुःख द्वेषी हैं यह जाने तथा इसी कारण किसी की भी हिंसा न करे ।
विवेचन - पृथ्वीकाय आदि एकेन्द्रिय जीव हैं इस बात की सिद्धि आचारांग सूत्र के प्रथम अध्ययन में अनेक युक्तियाँ देकर की है। बेइन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के जीव तो हलन चलन करते हैं इसलिए उनका जीवपणा तो स्वतः सिद्ध है तथा सर्ववादी निर्विवाद रूप से स्वीकार करते हैं। जिस
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