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कठिन शब्दार्थ - गुत्तो गुप्त, वइए छाए - छावे, छायएज्जा - छवावे, संमिस्सभावं
अध्ययन १०
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भावार्थ - जो साधु वचन से गुप्त है वह भावसमाधि को प्राप्त है । साधु शुद्ध लेश्या को ग्रहण करके संयम का अनुष्ठान करे तथा वह स्वयं घर न छावे और दूसरों से भी न छवावे तथा स्त्रियों के साथ संसर्ग न करे ।
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वचन से, समाहट्टु- ग्रहण करके, गिहं - गृह को, - मिश्रभाव का ।
विवेचन -: अनुयोगद्वार में साधु के लिये बारह उपमाएं दी गई हैं । उनमें से एक उपमा है 'उरग' अर्थात् सर्प। यह उपमा इस प्रकार घटित की गई है कि जैसे सर्प अपने लिये बिल नहीं बनाता है किन्तु दूसरों के द्वारा बनाये हुए बिल में निवास करता है। उसी प्रकार साधु अपने लिये मकान बनावे नहीं, बनवावे नहीं तथा उनके लिये बनाकर दिये गये मकान में भी निवास करे नहीं । इस प्रकार मकान पर छप्पर छाना, छवाना तथा छवाने का अनुमोदन भी करे नहीं । परन्तु गृहस्थों ने जो मकान अपने लिये बनाये हैं ऐसे निर्दोष स्थान में साधु ठहरे। गृहस्थों के साथ एवं स्त्रियों के साथ अधिक परिचय करे नहीं ॥ १५ ॥ .
जे केइ लोगंमि उ अकिरिय-आया, अण्णेण पुट्ठा धुय-मादिसंति ।
आरंभ सत्ता गढिया य लोए, धम्मं ण जाणंति विमोक्ख हेडं ॥ १६ ॥ कठिन शब्दार्थ - लोगंमि - लोक में, अकिरिय क्रिया रहित, आया - आत्मा, अण्णेण - दूसरों के, पुट्ठा - पूछने पर, धुयं धूत- मोक्ष का, आदिसंति- आदेश करते हैं, आरंभ सत्ता आरंभ में आसक्त, गढिया - मूच्छित, विमोक्ख हेउं मोक्ष के कारण को ।
भावार्थ - इस लोक में जो आत्मा को क्रियारहित मानते हैं और दूसरे के पूछने पर मोक्ष का आदेश करते हैं वे आरम्भ में आसक्त और विषयभोग में मूर्च्छित हैं वे मोक्ष के कारण धर्म को नहीं जानतें हैं ।
विवेचन सांख्य मतावलम्बी आत्मा को अकर्त्ता, अमूर्त और सर्वव्यापी मानते हैं और इस . अक्रियावाद से मुक्ति भी मानते हैं परन्तु क्रिया रहित आत्मा में बन्ध और मोक्ष भी घटित नहीं होते हैं। उनके तथाकथित साधु कच्चे जल से स्नानादि सावद्य क्रिया करते हैं इसलिये मोक्ष के कारणभूत श्रुत और चारित्र धर्म को भी वे नहीं जानते हैं । अतएव वे मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते हैं ॥ १६ ॥ पुढो य छंदा इह माणवा उ, किरियाकिरियं च पुढो य वायं । पवड्डइ वेरमसंजयस्स ।। १७॥
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जायस बालस्स पकुव्व देहं
कठिन शब्दार्थ - छंदा - छंद, रुचि, अभिप्राय, माणवा - मनुष्य, किरियाकिरियं - क्रिया अक्रिया को, पुढो भिन्न भिन्न जायस्स असंजयस्स - असंयत का ।
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जन्मे हुए, वेरं - वैर को, पवड्डइ
बढाता है,
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