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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १
कठिन शब्दार्थ - चिच्चा त्याग कर, अंतगं आंतरिक- भीतर के, सोयं - स्रोत को, णिरवेक्खो - निरपेक्ष होकर, परिव्वए संयम का पालन करे ।
भावार्थ - धन, पुत्र, ज्ञाति, परिग्रह और आन्तरिक शोक को छोड़कर मुनि संयम का पालन करे।. विवेचन - बाहरी और आभ्यन्तर परिग्रह को छोड़ कर अर्थात् धन कुटुम्ब, परिवार आदि बाह्य परिग्रह तथा मिथ्यात्व, अविरंति, प्रमाद, कषाय और अशुभयोग रूप आस्रव द्वारों को छोड़ कर मोक्ष प्राप्ति के लिये संयम का अनुष्ठान करे। जैसा कि कहा है
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छलिया अवयक्खता निरावयक्खा गया अविग्घेणं । 'तम्हा पवयणसारे निरावयक्खेण होयव्वं ॥
भोगे अवयक्खता पडंति संसारसागरे घोरे ।
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भोगेहि निरवयवखा तरंति संसारकंतारं ॥
अर्थ- जिन्होंने परिग्रह आदि में ममता रखी वे ठगे गये। परन्तु जो निरपेक्ष रहे वे सुखपूर्वक संसार सागर को तिर गये । अतः सिद्धान्त के रहस्य को जानने वाले पुरुष को निरपेक्ष रह कर शुद्ध संयम का पालन करना चाहिए।
पुढवी उ अगणी वाऊ, तण - रुक्ख-सबीयगा । अंडया पोय - जराऊ, रस- संसेय- उब्भिवा ॥ ८ ॥ कठिन शब्दार्थ - अंडया - अंडज, पोय पोत, जराऊ - संस्वेदज, उब्भिया उद्भिज्ज ।
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भावार्थ- पृथिवी, अग्नि, वायु, तृण, वृक्ष, बीज, अण्डज, पोत, जरायुज, रसज, संस्वेदज, और उद्भिज्ज ये सब जीव हैं ।
विवेचन- यहाँ पर जीवों के भेदों का कथन किया गया है। पृथ्वीकाय, अप्काय, ते काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय ये पांच स्थावर काय हैं। छठा त्रसकाय है। उसके कुछ भेद यहां पर बतलाये गये हैं। यथा - अण्डे से उत्पन्न होने वाला अण्डज कहलाता है यथा- कौआ, कबूतर, चिड़िया आदि । कपड़े की कौथली सहित उत्पन्न होने वाले पोतज कहलाते हैं। जैसे- हाथी, चमगादड़ आदि । जरायु अर्थात् जम्बाल से वेष्टित होकर उत्पन्न होने वाले जरायुज कहलाते हैं । यथा - गाय, भैंस, मनुष्य आदि । किसी भी प्रकार के रस के चलित अर्थात् विकृत हो जाने पर उसमें उत्पन्न हो जाने वाले रसज कहलाते हैं । यथा - दही, मीठा रस खट्टा रस के बिगड़ जाने पर उत्पन्न होने वाले बेइन्द्रिय आदि जीव । स्वेद अर्थात् पसीना से उत्पन्न होने वाले जीव यथा - जूँ, लीख, खटमल आदि। जमीन फोड़कर उत्पन्न
जराज, रस - रस, संसेय -
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