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________________ १९२ श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ ऊपर लिखी हुई सभी कोटियाँ मन, वचन और काया रूप तीनों योगों से हैं । अग्नि का आरम्भ किये बिना आहार आदि का पकना पकाना हो नहीं सकता है । इसीलिये मुनि होकर जो अग्नि का आरम्भ करते हैं वे कुशील (जिसके धर्म का स्वभाव कुत्सित है उसे कुशील धर्म कहते हैं।) हैं । अन्य मतावलम्बी लोग पञ्चाग्नि के सेवन रूप तपस्या से अपने शरीर को तपाते हैं तथा अग्नि होम आदि क्रिया से स्वर्ग की प्राप्ति होना बतलाते हैं । तथा लौकिक पुरुष पचन पाचन आदि के द्वारा अग्निकाय का आरम्भ करके सुख की इच्छा करते हैं वे सब कुशील हैं । तीर्थङ्कर भगवान् की आज्ञा के बाहर हैं । उज्जालओ पाण णिवायएज्जा, णिव्यावओ अगणिं णिवायएग्ज़ा । तम्हा उ मेहावी समिक्ख धम्मं, ण पंडिए अगणिं समारभिज्जा ॥६॥ कठिन शब्दार्थ - उज्जालओ - अग्नि जलाने वाला, पाण - प्राणियों का, णिवायएजा - घात करता है, णिव्यावओ - आग बुझाने वाला, मेहावी- बुद्धिमान, पंडिए - पण्डित, समिक्ख - समझ कर। भावार्थ - आग जलाने वाला पुरुष छह काय जीवों का घात करता है और आग बुझाने वाला पुरुष अग्निकाय के जीवों का घात करता है इसलिए बुद्धिमान् पण्डित पुरुष अग्निकाय का आरम्भ नं करे । विवेचन - पचन, पाचन, तपन, तापन और प्रकाश आदि का कारण रूप अग्नि को लकडी आदि डालकर जलाता है । वह अग्निकाय के जीवों का अथवा दूसरे स्थावर और त्रसं बहुत से प्राणियों का घात करता है । तथा जो पुरुष पानी आदि से अग्नि को बुझाता है । वह अग्निकाय के जीवों का घात करता है, इस विषय में भगवती सूत्र के सातवें शतक के दसवें उद्देशक में भगवान् के अन्तेवासी कालोदाई नामक अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से प्रश्न किया कि, हे भगवन् ! समान ताकत वाले दो पुरुष अग्निकाय का आरंभ करते हैं उनमें से एक अग्नि को प्रज्वलित करता है और एक पुरुष उसे बुझाता है । हे भगवन् ! इन दोनों पुरुषों में कौन महाकर्म को उपार्जन करने वाला है और कौन अल्प कर्म उपार्जन करने वाला है ? भगवान् उत्तर फरमाते हैं कि, हे कालोदाई ! जो पुरुष अग्निकाय को प्रज्वलित करता है वह बहुत से पृथ्वीकायिक, अप्पकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक जीवों का बहुत आरम्भ करता है और अग्निकाय का अल्प आरम्भ करता है । परन्तु जो अग्निकाय को बुझाता है वह पृथ्वीकाय आदि चार काय और त्रसकाय जीवों का अल्प आरंभ करता है। परन्तु अग्निकाय के जीवों का बहुत आरंभ करता है । इसलिये हे कालोदाई ! जो अग्निकाय को प्रज्वलित करता है वह महान् कर्म उपार्जन करता है और जो अग्निकाय को बुझाता है । वह अल्प कर्म उपार्जन करता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004188
Book TitleSuyagadanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages338
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size7 MB
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