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कहाऊँ स्तम्भ एवं क्षेत्रीय पुरातत्व की खोज
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परिशिष्ट-१७ तीर्थ बंदना अप्रैल, २००१, पृष्ठ ४-५ जैन धर्म का प्राचीन गौरव
कहांव का स्तंभ स्तभ पर अटैकित अभिलेख इतिहास संरचना के लिए अति महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इतिहासकार साहित्यिक साक्ष्यों की अपेक्षा अभिलेख साक्ष्य को अधिक वस्तुनिष्ठ मानते हैं। भारत में स्तम्भ पर अभिलेख लिखवाने का क्रम मौर्यवंशीय सम्राट अशोक ने प्रारंभ किया था। जिसे कालांतर में गुप्तवंशीय शासकों ने भी जारी रखा। पूर्वी उत्तर प्रदेश से ऐसे अभिलेख अल्प ही मिले हैं, उसी में से एक अभिलेख कहांव का है। जिसे विशेषज्ञ गुप्तवंश के प्रतापी शासक स्कंदगुप्त का मानते हैं। कहांव नामक यह ग्राम जहां यह स्तंभ स्थित है, वर्तमान में उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के सलेमपुर तहसील के अंतर्गत आता है। बरठा चौराहे से खुखुन्दू आने वाली सड़क पर करीब आधा किलोमीटर आगे यह गांव पड़ता है। अभिलेख में इसे 'ककुभ ग्राम' कहा गया है। प्रसिद्ध इतिहासविद् परमेश्वरीलाल गुप्त की पुस्तक प्राचीन भारत के अभिलेख भाग दो के अनुसार सर्वप्रथम सन् १८१६ ई० के बीच उत्तर प्रदेश का सर्वेक्षण करते हुए फ्रांसीसी बुकानन ने. इस लेख को देखा था। इनकी रिपोर्ट के आधार पर १८३८ ई. में माण्टगोमरी मार्टिन ने अपनी पुस्तक 'इस्टर्न इंडिया' में एक लेख लिखा और इसकी छाप प्रकाशित की। इसी वर्ष जेम्स प्रिंसेप ने भी अंग्रेजी अनुवाद सहित इसका पाठ प्रकाशित किया।
___ सन् १८६० ई. में फिट्ज एडवर्ड हाल ने इसके प्रथम श्लोक को अनुवाद सहित प्रकाशित किया। सन् १८७१ ई. में कनिंघम, १८८१ ई. में भगवान लाल इन्द्र जी ने अपने पाठ प्रकाशित किये. और फ्लीट ने उसका सम्पादन किया।
स्तम्भ २४ फीट ऊँचा है और लेख स्तम्भ के बीच के अठपहल भाग के तीन ओर २ फुट ११ इंच गुणे एक फुट ८ इंच के घेरे में है। स्तम्भ का निर्माण लाल बलुए पत्थर से हुआ है और यह देखने में अशोक के स्तम्भों सा लगता है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह स्तम्भ कहीं बाहर निर्मित किया गया और बाद में इसे यहां स्थपित किया गया। स्तम्भ के सबसे ऊपरी हिस्से पर लोहे की छड़ दिखायी देती है जो जंग रहित है, जिससे . स्पष्ट होता है कि गुप्त काल में अच्छे किस्म का लोहा प्राप्त होता था।
अशोक के स्तम्भों की भांति इस स्तम्भ पर भी उलटा कमल पुष्प अलंकृत
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