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कहाऊँ स्तम्भ एवं क्षेत्रीय पुरातत्व की खोज
परिशिष्ट-१३ प्राचीन भारत के प्रमुख अभिलेख (गुप्त काल ३१६-५४३ ई०) परमेश्वरि लाल गुप्ता, भाग-२, १६६६, पृष्ट १४६-४७
३७. कहाँव स्तम्भ-लेख, वर्ष १४१
परिचय देवरिया (उत्तर प्रदेश) जिले के अन्तर्गत सलेमपुर-मझौली से पाँच मील पर स्थित कहाँव ग्राम में स्थापित एक स्तमभ पर, जिस पर पाँच तीर्थंकरों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं, यह लेख अंकित है। लेख स्तम्भ के बीच के अठपहल भाग के तीन ओर २ फुट २।। इंच x १ फुट ८ इंच के घेरे में है।
उत्तर प्रदेश का सर्वक्षण करते समय १९०६ और १८१६ ई० के बीच फ्रांसिसबुकानन (हेमिलटन) ने इस लेख को देखा था। इसका उल्लेख उन्होंने अपनी उस रिपोर्ट में किया है जिसे उन्होंने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के संचालक मण्डल के सम्मुख प्रस्तुत किया था। इस हस्तलिखित रिपोर्ट के आधार पर १८३८ ई० में माण्टगोमरी मार्टीन ने अपनी पुस्तक 'ईस्टर्न इण्डिया' में इस लेख का उल्लेख किया और उसकी छाप प्रकाशित की। उसी वर्ष जेम्स प्रिंसेप ने भी अंगरेजी अनुवाद सहित इसका पाठ प्रकाशित किया। १८६० ई० में फिट्ज एडवर्ड हाल ने इसके प्रथम श्लोक को अनुवाद सहित प्रकाशित किया। १८७१ ई० में कनिंगहम ने और १८८१ ई० में भगवानलाल इन्द्रजी ने अपने पाठ प्रकाशित किये। फिर फ्लीट ने उसका सम्पादन किया।
पाठ भाषा : संस्कृत।
लिपि : ब्राह्मी (उत्तरवर्ती) . १. सिद्ध(म्) (१) ___ यस्योपस्थान भूमिर्नृपति-शत-शिरः-पात-वातावधूता २. गुप्तानां वन्शजस्य प्रविसृत-यशसस्तस्य सर्वोत्तमद्धेः (1) ३. राज्ये शक्रोपमस्य क्षितिप-शत-पतेः स्कन्दगुप्तस्य शान्ते ४. वर्षे त्रिन्शद्दशैकोत्तरक-शततमे ज्येष्ठ-मासि प्रपन्ने ( ।।१) ५. ख्याते (5) स्मिन्ग्राम-रत्ने ककुभ इति जनैस्साधु-संसर्ग-पूते (।) ६. पुत्रो यस्सोमिलस्य प्रचुर-गुण-निधेट्टिसोमो महा(त्मा), (।) ७. तत्सूनू रुद्रसोमः पृथुल-मति-यशा व्याघ्र इत्यन्य-संज्ञो। ८. मद्रस्तस्यात्मजो (5) भूद्विज-गुरु-यतिषु प्रायशः प्रीतिमान्यः ( ।।२) ६. पुण्य-स्कन्धं स चक्के जगदिदमखिलं संसरद्वीक्ष्य भीतो १०. श्रीयोर्थं भूत-भूत्यै पथि नियमवतामर्हतामादिकर्तृन् (।) ११. पञ्चेन्द्रां स्थापयित्वा धरणिधरमयान्सन्निखातस्ततोऽयम् १२. शैल-स्तम्भः सुचारुगिरिवर-शिखरायोपमः कीर्ति कर्ता (।।३)
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