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कहाऊँ स्तम्भ एवं क्षेत्रीय पुरातत्व की खोज ५ यह पुस्तक इस क्षेत्र के विस्तृत अध्ययन के लिए आधार रूप है । अभी बहुत खोज करनी शेष है, जैसे राजस्व-अभिलेख एवं गजेटियर इतिहास की कुछ सूचनायें छिपाये होगें जो हमने नहीं खोजी । आचार्य गुणधर्म (ई. १२३०) की रचना 'पुष्पदंत पुराण' का अध्ययन भी नहीं किया जा सका है । उन्होंने पुष्पदन्त स्वामी के दीक्षा एवं केवलज्ञान स्थल के विषय में क्या लिखा है ? 'टैस्ट-पिट' बनाना एवं वास्तविक खुदाई का कार्य यहाँ अभी तक नहीं हुआ। आसपास के स्थलों-खुखुन्दों, पड़रौना आदि पर भी पुरातात्विक अन्वेषण नाम मात्र को ही हुआ है । अन्य जैन स्तम्भों का अलग से कोई अध्ययन नहीं हुआ जो इस स्तम्भ के महत्त्व को रेखांकित करे ।
प्रोफेसर महेश्वरी प्रसाद ऑनरेरी डायरेक्टर पार्श्वनाथ विद्यापीठ करौंदी, वाराणसी, उन्होंने मूल प्रति देखकर मूल्यवान सुझाव दिये; डॉ० मारुतिनंदन प्रसाद तिवारी प्रोफेसर कला का इतिहास, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, जो जैन मूर्ति विज्ञान के अनन्य विद्वान हैं, जिनकी छत्रछाया में डॉ० आनंद कुमार श्रीवास्तव ने इस खोज कार्य के कुछ अंश किये; डॉ० बी.आर. मणि डायरेक्टर इन्स्टीट्यूट ऑफ/आर्केयोलॉजी, जिन्होंने संदर्भ खोजने में मेरी मदद की; श्री निर्मल कुमार जैन अध्यक्ष, भारतवर्षीय जैन महासभा, लखनऊ, जिन्होंने छपाई एवं खोज में सहयोग प्रदान किया; श्री पुखराज जैन अध्यक्ष, श्री दिगम्बर जैन पावानगर सिद्ध क्षेत्र समिति, गोरखपुर; डॉ० अभयकुमार जैन, श्री बलवीर सिंह जैन गोरखपुर; शिव प्रताप कुशवाहा कहाऊँ ने हमारी मदद की एवं अन्य सब महानुभावों का जिनका नाम स्थानाभाव से न लिखा जा सका, मैं सबका आभारी हूँ एवं धन्यवाद ज्ञापन करता हूँ।
पुस्तक के जिल्द के पृष्ट पर पुष्पदन्त स्वामी की चौथी सदी की मूर्ति की फोटो है जो प्रोफेसर रोज़रफील्ड के सौजन्य से श्री आर.सी. अग्रवाल ने 'ओरियन्टल इन्स्टीट्यूट ऑफ बड़ोदा' की १८वीं जिल्द (१९६८) में छापी . है। यह मूर्ति मारुतिनंदन प्रसाद तिवारी की पुस्तक 'जैन प्रतिमाविज्ञान' पृ० १०४ के अनुसार श्री पुष्पदन्त स्वामी की प्राचीनतम प्रतिमा है । यह मूर्ति इस स्तम्भ से पूर्व की है।
सत्येन्द्र मोहन जैन बी.एस सी. बी.ई., एम.ई., एफ.यू.डब्लू.ए.आई.
बी.३२/१२ नरिया, वाराणसी ।
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