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________________ १. अंचल का महत्त्व भगवान् पुष्पदन्त जैनधर्म में नौवें तीर्थंकर हैं । इनकी दीक्षा ककुभवन में हुई एवं इन्हें केवलज्ञान भी इसी वन में हुआ । यही स्थान अब 'कहाऊँ' नाम से प्रसिद्ध है । यहाँ जैनधर्म की परम्परा उच्छिन्न-सी हो गई है । केवल एक स्तम्भ मौजूद है जो पाँचवीं शताब्दी ई. का है । चारों तरफ खण्डहर एवं कुछ टूटी-फूटी जैन मूर्तियाँ अवश्य हैं । पास में खुखुन्दों ग्राम है जो पुराना काकन्दी नगर है । वहाँ भी काफी खण्डहर हैं व कुछ गुप्तकालीन जैन मूर्तियाँ जैन मन्दिर में देखी जा सकती हैं । काकन्दी भगवान् पुष्पदन्त के गर्भ एवं जन्म का स्थान है । इन खण्डहरों में इस क्षेत्र का इतिहास छिपा है जो प्रागैतिहासिक काल तक जाना चाहिये। गप्तकाल में अवश्य ही यहाँ पर जैनधर्म का वर्चस्व रहा है। तभी एक पाषाण का इतना सुन्दर स्तम्भ यहाँ विराजमान है । आवें, इस स्तम्भ के इतिहास का अध्ययन करके देखें कि इससे पहले व आगे इस क्षेत्र का धार्मिक स्वरूप क्या रहा होगा ? २. ग्राम का नाम (१) डॉ० फ्रांसिस बुकनान ने इस स्थान को १८०७ से १८१३ के बीच देखा । उन्होंने इस गाँव का नाम Kangho लिखा है । (२) लिरटन जिन्होंने १८३७ में यह स्तम्भ देखा, ने इस गाँव का नाम Kubaon बताया। (३) जनरल कनिंघम ने १८६१-६२ में इस स्थान का भ्रमण किया एवं बताया कि लोग इस गाँव को Kahaon या Kahawan कहते हैं । उन्होंने कहा बुकनान का Kangho, Kanghon से विकृत होकर बना है । (४) भगवानलाल इन्द्रजी पण्डित ने स्थान का नाम Kahaun वर्ष १८८१ में लिखा। (५) गैरिक ने १८८०-८१ में गाँव का नाम Kahaon या Kahong बताया। (६) जोन फेदफुल फ्लीट ने १८८८ में अपने लेख में इस गाँव का नाम Kahaum या Kahawam छापा । फ्लीट अपने लेख में लिखते हैं कि इण्डियन एटलस की शीट १०३ में इस गाँव के नाम Kahaon, Kahaong, Kangho एवं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004156
Book TitleKahau Stambh evam Kshetriya Puratattv ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra Mohan Jain
PublisherIdrani Jain
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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