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संदर्भाल्लेख 1. आचार्य श्री भट्ट अकलंक देव विरचित,स्वरूप सम्बोधन, (स्वरूप देशना आचार्य श्री _ विशुद्ध सागर) प्रकाशक - अखिल भारतीय श्रमण सेवा समिति, इन्दौर (म० प्र०)
मो0 9245321151 2. स्व-सम्बोधन,श्लोक 25 एवं 26 की 'स्वरूप-देशना' 3. दृष्टव्य, समन्तभद्र-ग्रन्थावली, संकलन-डा० गोकुलचन्द्र जैन, वीर सेवा मन्दिर
ट्रस्ट, बी. 32/13, नरिया, वाराणसी, प्र० सं० 1989 4. डा० नरेन्द्र कुमार जैन, समन्तभद्र अवदान, स्याद्वाद प्रसारिणी सभा, न्यू विद्याधर
_ नगर, जयपुर, प्र० सं० 2001, पृ० 147 उद्धृत- आप्तमीमांसा, 22, 35, 36,75 5. आप्त मीमांसा, 75 6. यदेव सत् तदेव अतत्, यदबैंक तदैवानेकम्, यदेव सत् तदेवासत् यदेवं नित्यं
तदेवानित्यम्, इत्येकवस्तु वस्तुत्व- निष्पादक परस्पर विरूद्ध शक्ति द्वयप्रकाशनमने कान्तः।-समयसार, आत्मख्याति, टीका, 10.247, उद्धृत, प्रो०
उ० च० जैन, आप्तमीमांसा तत्त्वदीपिका, पृ० 89 7. आप्तमीमांसा, 104 8. लघीयस्मय, स्वो० भा.3.62 • 9. स्व० स०,श्लोक। 10. स्व० स०, स्व० देशना, पृ०1 11. अलंघ्यशासनं जैनमनेकान्तो व्यवस्थितः ।
-समयसार, अमृत कलश, 263 12. ज्ञानी भवन्ति जिननीतिमलंध्यन्तः।- वही, 265 13. स्व० देशना, 2.49 14. वही, 2.59 15. ग्राह्यस्ततः चिन्मय एवं भावो, भावाः परे सर्वतः एवं हेयः।
- अमृत कलश,148 16. स्व० सम्बो०,8 17. अकलंक,त०रा०, 2.7,2.6 18. पंचास्तिकाय,8,11,15
स्वरूप देशना विमर्श
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