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मंगलाशीष
परम पूज्य न्याय चूड़ामणि, न्यायाचार्य श्री भट्ट अकलंक देव ने ‘स्वरूप-सम्बोधन' कृति के द्वारा जो आत्म सम्बोधन के साथ न्याय दर्शन को समझाते हुए गागर में सागर भरा है, वह अद्वितीय है।
आचार्य श्री विशुद्धसागर जी ने अपनी सरल शैली में इसे आबाल-गोपाल को परोसा है, वह प्रशंसनीय है। वे पर हितकारी न्याय को टंकोत्कीर्ण बनाते हुए जनमानस में व्याप्त अज्ञान-तिमिर को दूर करते रहें, यही मेरा उन्हें शुभाशीष है।
-गणाचार्य विरागसागर
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