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चारों अनुयोगों की सार्थकता न्यायशास्त्र से सम्बन्धित प्रकरण, मुनिचर्या का आध्यात्मिक पक्ष, देशकाल की मर्यादा आदि तथा श्रावक समाज हेतु आचरण एवं चिन्तन बगैरह उनकी सर्वोदयी देशना में सम्मिलित है। उन्होंने स्वरूप देशना में विपुल संख्या में न्याय विषय के शास्त्रीय उद्धरणों को प्रस्तुत कर तत्त्व निर्णय में उसकी उपयोगिता प्रकाशित की है। उनके स्वरूप देशना रूप योगदान को जिनवाणी सेवा का एक उत्कृष्ट मानदंड माना जावेगा। इस हेतु श्रद्धा से ऐसे बहुत आचार्य परमेष्ठी को शतशः नमन । उनके विषय में निम्न उक्ति सार्थक होगीमनीषिणः सन्ति न ते हितैषिणः, हितैषिणः सन्ति न तो मनीषिणः। सुहृच्च विद्वानपि दुर्लभो नृणां, यथौषधं स्वादु हितं च दुर्लभम्॥
संदर्भ सूची 1. सर्वार्थसिद्धि टीका चूलिकागत (आ० पूज्यपाद स्वामी) 2. स्वरूप देशना पृ० 217 3. आ० माणिक्यनन्दि, परीक्षामुख 1/1 4. आ० अकलंक देव, लधीयस्त्रय-60 5. (न्यायग्रन्थ) प्रमाण परीक्षा- 53 6. आ० अकलंकदेव, अष्टशती 7. आ० समन्तभद्र वृहत्स्वयंभू स्तोत्र-63 8. स्वरूप देशना पृ० 36
स्वरूप देशना विमर्श
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