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________________ 6. कारण-कार्य समयसार- बिना कारण समयसार के कार्य समयसार नहीं होता । सम्यक्त्व पर्याय कारण समयसार है, चारित्र पर्याय कार्य समयसार है, चारित्र समयसार कारण पर्याय है तो अशरीरी सिद्ध पर्याय कार्य समयसार है। जिनवाणी में सर्वत्र कारण कार्य व्यवस्था है। पृ० 49 7. वृद्ध-बाल-अतिबाल बनना- संयम के लिए वृद्ध बनना, सहजता के लिए बालक और ज्ञान के लिए बिल्कुल ही बालक अर्थात अति बाल बनना । पृ० 58 8. पुण्य पुरुषों के स्मरण से पापों का क्षय-पुण्य पुरुषों के नाम स्मरण से पापों का क्षय होता है। पदमपुराण-समयसार एक दूसरे से बाहर नहीं केवल भाषा शैलियों में अन्तर है द्रव्यगुण पर्याय का कथन सम्पूर्ण द्वादशांग में है रविषेणाचार्य जी के कथनानुसार पुण्य पुरुषों के पुराण पाठ से पुण्य की वृद्धि एवं कर्म की निर्जरा भी होती है। पृ० 61 9. वस्तु स्वरूप नयातीत है- वस्तु न निश्चय नय है न व्यवहार नय है वस्तु तो वस्तु है व्यवहार और निश्चय तो वस्तु को कहने की 2 भाषायें हैं । एक अभेद भाषा है एक भेद भाषा है। वस्तु में भाषा नहीं है वस्तु को समझने के लिए भाषा है। (पृ० 64) 10. स्त्री की परिभाषा जो दोषों से आच्छादित हो और पर को भी आच्छादित करे, दोषों से अच्छादित होना ही जिसका गुण बन चुका हो वह स्त्री है। चाहे वे पुरूषवेद में या स्त्री वेद में हो । विषय कषाय में रत जीव स्त्री वेदी है।पृ० 83 11. आश्रम व्यवस्था का निषेध- स्वयंभू स्तोत्र में आचार्यश्री समन्तभद्रजी ने आश्रम व्यवस्था का निषेध किया है। वे दिगम्बरों के आश्रम/मठों का निषेध कर रहे हैं क्योंकि आश्रम/मठों में रहकर नाना प्रकार के सुखों की अनुभूति लेते हुए . जो यह कह रहे हैं कि मैं ब्रह्म में लीन हो रहा हूँ। वे मठ में निवास करना आश्रम नहीं, ब्रह्मचर्य में लीन होने का नाम आश्रम है। यथा- अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमं । न सा तत्रारम्योऽस्त्यणुरपि च यत्राश्रमविद्यौ ॥ १॥ स्वयंभूस्तोत्र ॥ 12. पुण्योदय की प्रबलता/माहात्म्य- पुण्य द्रव्य के अभाव में हाथ पैर का पुरुषार्थ भी कार्यकारी नहीं होता। पूर्व पुण्य के नियोग पर व्यक्ति असत्य भी बोले तब भी उसे सत्य समझा जाता है और पुण्य क्षीण होने पर सत्य भी बोलने पर वह असत्य समझा जाता है।सोमा और उसकी सासु से पूछ लो ॥ पृ० 103,104 स्वरूप देशना विमर्श 223 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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