________________
10
मंगल " – (मड्ग् + अलच्)
1. शुभ, भाग्यशाली, कल्याणीकारी, हितकाम
2. कल्याण, शुभप्रद, शुभत्व
3. शुभशकुन, कोई भी शुभ घटना
4. आशीर्वाद, नांदी, शुभकामना
5. शुभ या मंगलकारी पदार्थ
6. शुभ अवसर, उत्सव, शुभ संस्कार
मंगलाचरण - किसी भी ग्रंथ के आरम्भ में पढ़ी जाने वाली प्रार्थना के रूप में
प्रस्तावना ।
मंगल " 1. गालयदि विणास यदे धारेदि दहेदि हंति सोद्ययदे । विद्वसेदि मलाई जम्हा तम्हा य मंगलं भणिदं ॥
2. जं गालयते पावं मं लाइव कहममंगलं तं ते । जाय अण्णा सत्वा कहमिच्छति मंगलं तं तु ॥
मंगल भावमलं णादव्वं अण्णाणादंसणादि परिणामो ।
12
इस प्रकार मंगल का विवेचन विभिन्न ग्रंथों में मिलता है।
मंगल क्या ? - 'मं' नाम मल का है। जो पाप रूप मल को नष्ट करता है, जो द्रव्यमल (ज्ञानावरणादि आठ प्रकार के कर्म) तथा भावमल (अज्ञान और अदर्शन आदि परिणाम) को गलाता है, नष्ट करता है, मंगल कहते हैं ।
मंगलं,
'मंग' नाम सुख का है । उसको जो लाता है, प्राप्त कराता है, मंगल कहते हैं । जिसके द्वारा हित जाना जाता है या सिद्ध किया जाता है, मंगल कहलाता है । मंगल कौन? - चत्तारि मंगलं, अरहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं ।
जिनका जीवन तारण-तरण अर्थात् स्वयं संसार से तरते हैं, पार होते हैं, साथ ही अनुकरण (आचरण) करने वालों को भी तारते हैं। वह सभी मंगल हैं—
अर्हत- जिन ने अर्हत् सत्ता को पाकर भव्य जीवों के लिए उसे पाने का मार्ग प्रशस्त किया है।
स्वरूप देशना विमर्श
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
205
www.jainelibrary.org