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________________ भोपाल, डा० शीतल चन्द्र जैन जयपुर, पं० शिवचरन लाल मैनपुरी, डा० सुशील जैन मैनपुरी, डा० भागचन्द्र जैन भास्कर, डा० शेखर चन्द्र जैन अहमदाबाद, डा० श्रेयांश सिंघई जयपुर, डा० अनेकान्त जैन दिल्ली, डा० फूलचन्द्र प्रेमी दिल्ली, डा० नरेन्द्र कुमार जैन गाजियाबाद, पं० पवन कुमार दीवान मुरैना, डा० सुशील जैन एवं ब्रह्मचारी जयकुमार जैन निशांत सहित लगभग 40 शीर्षस्थ विद्वानों ने इस संगोष्ठी में सहभागिता की। आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज अपनी तरह के अनूठे और अलबेले श्रमण हैं। इतनी कम उम्र में जैन दर्शन और सिद्धान्त में उनकी गहरी पैठ हो गयी है। प्रायः वे कहते हैं: "कोई कहे कछु है नहीं, कोई कहत कछु है, है न है के बीच में जो है, सो है।" आचार्य श्री जी की स्वरूप देशना पर आयोजित यह संगोष्ठी इतनी कमाल की हुई कि आगरा वालों को कहना पड़ा कि इतिहास में पहली बार ऐसी संगोष्ठी आयोजित की गयी है। 13 अक्टूबर को अखिल भारतवर्षीय धर्म संरक्षिणी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्मल कुमार सेठी एवं आगरा के सुप्रसिद्ध उद्योगपति प्रदीप जैन ने चित्र अनावरण एवं दीप प्रज्वलन के साथ इस संगोष्ठी का उद्घाटन किया। 13, 14, 15 अक्टूबर में आयोजित 8 सत्रों की विशेषता यह थी कि श्रोताओं की उपस्थिति हॉल में खचाखच रहती थी। विषय पर गम्भीर मंथन हुआ और लगभग सभी विद्वानों ने अपने आलेखों का वाचन किया इस अवसर पर अकलंक ग्रंथ, त्रयम एवं योगसार "अध्यात्म देशना” अनुशीलन का विमोचन भी हुआ । पूज्य आचार्य श्री के सानिध्य में सम्पन्न हुई इस संगोष्ठी का संयोजन एवं संचालन मेरे द्वारा किया गया जिसे मैं अपने लिए एक उपलब्धि मानता हूँ। वर्षायोग समिति एवं छीपीटोला जैन समाज ने सभी विद्वानों का भावपूर्ण सत्कार किया। संगोष्ठी में वाँचे गये आलेखों का यह संग्रह अब पुस्तिका के रूप में आपके सामने प्रस्तुत है। इससे संगोष्ठी का महत्व बढ़ेगा और संगोष्ठी यादगार बनेगी। मैं आशा करता हूँ कि इन आलेखों से भविष्य में होने वाली संगोष्ठियाँ भी आगे का स्वर्णिम इतिहास लिखेंगी। इसी आशा और भावना के साथ मैं परम पूज्य आचार्य श्री के चरणों में अपना विनम्र प्रणाम निवेदित करता हूँ। अनूपचन्द्र जैन (एडवोकेट) सम्पादक (ii) Jain Education International For Personal & Private Use Only -www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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