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दशाश्रुत छेदसूत्र अन्तर्गत्
“कल्पसूत्रं (बारसासूत्र) (मूलम्) .......... मूलं- सूत्र.[१२१] / गाथा.||-|| ....... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......"कल्प(बारसा)सूत्रम्" मूलम्
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प्रत
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सूत्रांक/
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गाथांक [१२१]
उवागए, रायगिहं नगरं नालंदं च बाहिरियं नीसाए चउद्दस अंतरावासे वासावासं उवागए, छ मिहिलोए दो भद्दिआए एगं आलंभियाए एगं सावत्थीए पणिअभूमीए
एगं पावाए मज्झिमाए हत्थिवालस्स रण्णो रज्जुगसभाए अपच्छिमं अंतरावासं वासावासं 18/उवागए॥१२१॥ तत्थ णं जे से पावाए मज्झिमाए हत्थिवालस्स रण्णो रज्जुगसभाए ४ अपच्छिमं अंतरावासं वासावासं उवागए ॥ १२२ ॥ तस्स णं अंतरावासस्स जे से दवासाणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे कत्तिअबहुले, तस्स णं कत्तियबहुलस्स पन्नरसीप
क्खेणं जा सा चरमा रयणी, तं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए विइक्वंते : समुज्जाए छिन्नजाइजरामरणबंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिबुडे सव्वदुक्खप्पहीणे, चंदे नाम से दुच्चे संवच्छरे पीइवणे मासे नंदिवद्धणे पक्खे अग्गिवेसे नाम से
१-२ मिहिलियाए.
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दीप अनुक्रम [१२७]
POSTALS4
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भ० महावीरस्य निर्वाणं
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