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दशाश्रुत छेदसूत्र अन्तर्गत्
“कल्पसूत्रं (बारसासूत्र) (मूलम्) .......... मूलं- सूत्र.[११५] / गाथा.||-|| ........ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......"कल्प(बारसा)सूत्रम्" मूलम्
कल्प०
प्रत
सूत्रांक/
गाथांक [११५]
उवसग्गा उप्पज्जंति, तंजहा-दिवा वा माणुसा वा तिरिक्खजाणिआ वा, अणुलोमा वारसो वा पडिलोमा वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ॥ ११५॥ तएणं समणे भगवं महावीरे अणगारे जाए, इरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए उच्चारपासवणखेलसंघाणजल्लपारिट्रावणियासमिए मणसमिए वयसमिए कायसमिए मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारी अकोहे अमाणे अमाए अलोहे संते पसंते उवसंते परिनिबुडे अणासवे अममे अकिंचणे छिन्नगंथे निरुवलेवे, कंसपाई इव मुक्कतोए, संखे इव निरंजणे, जीवे इव अप्पडिहयगई, गगणमिव निरालंबणे, वाऊ इव अप्पडिबद्दे, सारयसलिलं व सुरहियए, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवे, कुम्मे इव गुत्तिदिए, खग्गिविसाणं व एगजाए, विहग
१ छिण्णसोए (क० कि०)
दीप
अनुक्रम [११७-११९]]
३१॥
| भ० महावीरस्य केवलज्ञान पूर्वस्थिति
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