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दशाश्रुत छेदसूत्र अन्तर्गत्
“कल्पसूत्रं (बारसासूत्र) (मूलम्) ........... मूलं- सूत्र.[६१] / गाथा.||-|| ....... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...... कल्प(बारसा)सूत्रम्" मूलम्
A
प्रत
॥१८॥
सूत्रांक/
गाथांक [६१]
कल्प० |स्संते सयपागसहस्सपागेहिं सुगंधवरतिल्लमाइएहिं पीणणिज्जेहिं दीवणिजेहिं मयणिज्जेहिं ||
विहणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं सबिंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भंगिए समाणे तिल्लचम्मंसि | निउणेहिं पडिपुण्णपाणिपायसुकुमालकोमलतलेहिं पुरिसेहिं अब्भंगणपरिमद्दणुवलणकरणगुणनिम्माएहिं छेएहिं दक्खेहिं पटेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं जिअपरिस्समेहिं अट्ठिसुहाए । मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए चउबिहाए सुहपरिकम्मणाए संवाहिए समाणे अवगयपरिस्समे अट्टणसालाओ पडिनिक्खमइ ॥६१ ॥ पडिनिक्खमित्ता जेणेव मजणघरे है। तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मजणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्तमणिरयणकुट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाणमंडवंसि नाणामणिरयणभत्तिचितंसि हाणपीढंसि मुहनिसण्णे पुप्फोदएहि अगंधोदएहि अ उण्होदएहि अ सुहोदएहि
१ खेयपरिस्समे .
दीप
SIASANAXASSASALSA
अनुक्रम [६३]]
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॥१८॥
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