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________________ आगम (३६) प्रत सूत्रांक [३१] दीप अनुक्रम [२५] अत्र उद्देशकः २ आरब्धः “व्यवहार” - छेदसूत्र - ३ ( मूलं ) उद्देश: [१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ....... मूलं [३१] ...आगमसूत्र [ ३६ ], छेदसूत्र [३] "व्यवहार" मूलं - परिहारस्स उपाएमा ३१ एवं सोसतो '८९१ । ३२ गाओ कम परपासंहपटिम उपसंपत्ति विहरेजा परलिंग च से य इच्छेजा दोपि तमेव गणं उपजिलाहिरिए, नत्थि तस्स उप्पसियं केइ ए वा परिहारे वा, मन्नत्व एमाए आलोचनाए । ३३ भिक्खू व मणाओ जयकम्म ओहाज से इच्छेजा दोपि तमेव गणं उपज्जितानं विलिए, नत्य तस्स सम्पत्तियं के छेए वा परिहारे या नन्नत्व एगाए सेहो बहाबनाए '९९४ । ३४ । मिक्यू य अन्नपर अभिवद्वाणं परिसेवित्त इज्जाबालोएचए जत्थेव अपनी शायरियउवज्झाए पासज्जा कप्प से तत्संलिए आलोएसए वा परिक्रमेस वा निन्दितए वा गर हिए या विहिर या विलोनिया अकराए अम्ल या अहारिक पाय पति वा नो अपनी जाि साहम्मि सूर्यागमं पासेज्जा तस्संलिए कम्प आएर वा जान परिवज्जेस वा नो मोह समागमं पान इमं पातेमा पसे तरसलिए आलोएसए वा जान पडिवजेता वा नो जन्मोत्सव सागपात कम से लिए आए बानो सारुवियं वज्झाग पाजा जत्येष समयोवा पच्छाकडे मस्तु बज्झाग पासेज्जा कम्प से तरसंवियं बालो या पतिमेवा जावपापविएवा नो चेन समास पच्छा वस्तु झागमं पातेजा जत्येव सम्मभावियाई पेइवाई पासज्जा कम्पइसे तस्संलिए ए बाजा पायपिडिज्जितएवा नो सम्मानियाई चेयाई पाजा बहिया गामस्सया जान संनिवेस वा पाणामिमुहे या उदीनामिमुहे या करपलपरिण हियं सिरसायनं यत्पर अंजलि कम से एवं एवइया मेरा एव अहं अपरो अरहंताणं सिद्धानं अतिए आलोएज्जा परिक्रमेनिन्जा जय पाय पडवाससिमि ९७३ ॥३५॥ पढो उसओ] १॥ दो साहिति, एगे सत्य अपरं असणं पडिसेवित्ता आलोएमा पनि पा पा१ि] दो समय एमओ तो अक्षय अणं पडिसेविता] जालोएगा एवं तत् कप्पा बनाएगं निविसेला, अह पच्छा से निि तेजा। २। मढ्ये साहम्मिया एमओ विहति एमे तत्य अयरं अकिबाणं पडिसेविता आलए उचितारणावटि ३ महने सामिया गो रेति स से अक्षरं अकिबट्टा पढिसेवित्ता आलोएमा एतप्पा असा निश्जिा, वह पच्छासेऽनि निश्जिा ५७१४] परिहारकम्पडिए मिक्यू मिलाय मागे अया पाएमा से या उणि उपसा करण यावदियं से वनो संरेखा अपरिहारिएणं करण देपावदियं से अनुपरिहा रिणं कीरमार्ण यावदियं साइज सेवि कसिने तत्येव आयडेसिया ७२' 141 परिहारपट्टियं भिक्खु मानो कप्प तस्माच्छेस् निहित, अमि लाए तस् करण पाडि जान जो रोगापट्टाओ चिपको, तो पच्छा तर बहाल नाम महारे पट्टविय सिया पारशिलामा जाप पयित्रेलिया, लित्तचित्तं दित्तचित्तं जस्लाइ उम्बायपत० उपसम्प०, साहिगरणं० [सपायच्छितं मत्तपाणपडियाइनिखतं जायं पिच सिया '२२६' । ७-१७। जगद्वयंभू नो कम्प तस्स गावच्छेदयस उपद्वात्तिए १८ जगन भिक्खु हि कम्प तस्स गणाच्छे उपाए । १९। पारस्चियं भिं] अगिहि नो कप्प तस गणाच्छेचस उपावित २ पारंचियं मिक्सुं निहि कम्प वस्स गणाच्या २१० अमिहिनूर्य या मिह वा कप्पर तरस गणाच्यस्स उद्वातिए जहा तस्स गणस्स पतियं सिया २२ पारंचियं नि अनिहि या निहिप्परगणाइयउक्ावित्तए जहा तस्स गणस्स पतियं शिया '२५८।२३। विहन्ति एतत्य अपर चिट्ठाण परिसेविताना 'अहं मन्ये अमुगेर्ण साहुया सर्व इमन्त्रिय इममिव कारणमि पडिलेवी से सत्य पुष्यिव्ये 'किं पद्धिसेवी अपडितेची सेवा पडिलेवी' परिहारपले सेवा डिसेबी'नो परि हारपले, जसे पमाणं वय से पमाणको बलिया से किमाहु भन्ते १, सबमा सहारा २७०' ।२४। विस्तृव भगाओ कम्म ओहाणुमेह से इ अगोहाइए, सेव इच्छेजा दोपि तमेव गणं उपसंपत्तिणं विलिए तत्य येरा इमेवाकये विवाद समुप्यमित्याह में अज्जो जगह किं पडिसेविं उपडि सेव पुच्छिमध्ये 'किं पडिसेवी अपडिलेवी?" से या 'पडिसेबी' परिहारपत्ते से वा 'नो पडिलेवी' नो परिहारपले. असे मार्ग वह से पमाणको चेतने से किमा मन्ते, बन्ना बधद्वारा '३१९।२५ एमपक्लियस मिक्स कम्पयरियाया इसरियं दिसं या अणुविसंवा उदितिए वा पारितए वा जहा या तस्स गणस्स पतिर्य १७१ व्यवहा मुति दीपसागर ~6~
SR No.004136
Book TitleAagam 36 VYAVAHAAR Moolam evam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages17
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size5 MB
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