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________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्क न्धः [१] ------------------ अध्य यन [१], ----------------- -- मूलं [१८-२१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: ज्ञाताधर्मकथाङ्गम्, प्रत सूत्रांक [१८-२१] ॥३८॥ णेति, ततेणं मेहस्स कुमारस्स अम्मापितरोतं कलायरियं मधुरेहिं वयणेहिं विपुलेणं वत्थगंधमल्लालंकारेणं सक्कारेंति सम्माणति २त्ता विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयंति २त्ता पडिविसति (सूत्रं१८) नते णं से मेहे कुमारे बावत्तरिकलापंडिए णवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारसविहिप्पगारदेसीभासाविसारए गीइरई गंधवनहकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलं भोगसमत्थे साहसिए बियालचारी जाते याचि होत्था, तते णं तस्स मेहकुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं बावत्तरिकलापंडितं जाव वियालचारी जायं पासंति २त्ता अट्ट पासातवडिंसए करेंति अन्भुग्गयमुसियपहसिए विव मणिकणगरयणभत्तिचित्ते वाउद्भूतविजयवेजयंतीपडागाछत्ताइच्छत्तकलिए तुंगे गगणतलमभिलंघमाणसिहरें जालंतररयणपंजरुम्मिल्लियब मणिकणगधूभियाए वियसितसयपत्तपुंडरीए तिलयरयणद्धयचंदचिए नानामणिमयदामालंकिते अंतो बहिं च सण्हे तवणिज्जरुइलवालुयापत्थरे मुहफासे सस्सिरीयस्वे पासादीए जाव पडिरूबे एगं च णं. महं भवणं करेंति अणेगखंभसयसन्निविट्ठ लीलद्वियसालभंजियागं अन्भुग्गयसुकयवहरवेतियातोरणवररइयसालभंजियासुसिलिट्ठविसिट्ठलट्ठसंठितपसत्यवेरुलियखंभनाणामणिकणगरयणखचितउज्जलं बहुसमसुविभत्तनिचियरमणिज्जभूमिभागं ईहामिय जाव भत्तिचित्तं खंभुग्गयवयरवेड्यापरिगयाभिरामं विजाहरजमलजुयलजुत्तंपिव अच्चीसहस्समालणीयं रूवगसहस्सकलियं भिसमाणं भिम्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसंसुहफासं सस्सिरीयरूवं कंचणमणिरयणधूभियागं नाणाविहर्ष उत्क्षिप्तज्ञाताम्मेस्य कलाग्रहणं कलाचार्यसकारःप्रासादाश्चसू. १८-१९ दीप अनुक्रम [२५-३०] ॥३८॥ ~ 79~
SR No.004106
Book TitleAagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages512
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size109 MB
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