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________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्तिः ) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [११], ------------------ मूलं [९०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सुत्रांक [१०] दीप पाया मंदावाया महावाता वायति तदा णं बहवे दावदवा रुक्खा जुपणा झोडा जाब मिलायमाणा २ चिट्ठति, अप्पेगइया दावद्दवा रुक्खा पत्तिया पुफिया जाय उबसोभेमाणा २ चिटुंति, एवामेवसमणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंधी वा पचतिए समाणे बहणं अण्णउत्धियाणं बहूणं गिहत्थाणं सम्म सहति बरणं समणाणं ४ नो सम्मं सहति एस णं मए पुरिसे देसाराहए पन्नत्ते समणासो।। जया शं नो दीविचगा णो सामुहगा ईसिं पुरेवाया पच्छावाया जाव महावाया तते णं सबेदावच्या रुक्खा जुण्णा झोडा. एवामेव समणाउसो! जाव पवतिए समाणे बहूणं समणाणं २ बहूणं अन्नउत्थिय. गिहत्थाणं नो सम्मं सहति एस णं मए पुरिसे सबविराहए पण्णते समणाउसो!, जया णं दीविचगावि सामुद्दगावि ईसिं पुरेवाया पच्छावाया जाव वायति तदा णं सबे दावदवा रुक्खा पत्तिया जाव चिट्ठति, एवामेव समणाउसो! जे अम्हं परतिए समाणे बट्टणं समणाणं बरणं अनउस्थियनिहत्थाणं सम्मं सहति एस णं मए पुरिसे सबाराहए पं०1, एवं खलु गो ! जीवा आराहगा वा विराहगा वा भवंति, एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया एक्कारसमस्स अयम? पण्णत्तेत्तिबेमि ॥ (सूत्रं-१०) एकारसमं नायज्ज्ञयर्ण समतं॥ सर्व सुगम, नवरं आराधका ज्ञानादिमोक्षमार्गस्य विराधका अपि तस्यैव 'जया णमित्यादि 'दीविच्चगा' द्वैप्या द्वीपसम्भवा ईषद पुरोवाता:-मनाक्-सस्नेहवाता इत्यर्थः, पूर्वदिक्सम्बन्धिनो बा, पथ्या वाता-वनस्पतीनां सामान्येन हिता अनुक्रम [१४२] ~346~
SR No.004106
Book TitleAagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages512
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size109 MB
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