________________
आगम
“ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:)
(०६)
श्रुतस्कन्ध: [१] .............-- अध्ययनं [७], .. .-- मलं [६३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सत्राक
[६३]
दीप अनुक्रम
जह बहुया तह भवा जह सालिकणा तह वयाई ॥१॥ जह सा उज्नियनामा उज्शियसाली जहत्यमभिहाणा । पेसणगारितेणं | असंखदुक्खरखणी जाया ॥ २ ॥ तह भयो जो कोई संघसमक्खं गुरुविदिबाई । पडिबजिउं समुज्झइ महजयाई महामोहा ॥ ३ ॥ सो इह चेव भवमी जणाण धिकारभायणं होई । परलोए उ दुहत्तो नाणाजोणीसु संचरइ ॥ ४ ॥ उक्तं च-'धम्माओ भ?" वुत्तं, "इहेबऽहम्मो"युत्तं "जह वा सा भोगवती जहत्थनामोवभुत्तसालिकणा । पेसणविसेसकारितणेण पत्ता दुई चेव ॥ ५॥ तह जो महावयाई उवर्भुजइ जीवियत्ति पालितो। आहाराइसु सचो चत्तो सिवसाहणिकछाए ॥६॥ सो एत्थ जहिच्छाए पावइ आहारमाइ लिंगिचि । विउसाण नाइपुलो परलोयम्मी दुही चेव ॥ ७॥ जह वा रक्खियवहुया रक्खियसालीकणा जहत्थक्खा । परिजणमण्णा जाया भोगमुहाई च संपना ॥८॥ तह जो जीवो सम्म पडिवजिचा महबए पंच । पालेइ निरइयारे पमायलेसंपि बज्जेतो ॥९॥ सो अप्पहिएकरई इहलोयंमिवि विऊहिं पणयपओ । एगंतसुही जायइ परंमि मोक्खपि पावे ॥१०॥जह रोहिणी उ मुण्हा रोवियसाली जहत्वमभिहाणा । बड्डित्ता सालिकणे पत्ता सबस्ससामित्तं ॥११॥ तह जो भयो पाविय बयाई पालेइ अप्पणा सम्मं । अनेसिपि भवाणं देह अणेगेसि हियहेउं ।। १२ । सो इह संघपहाणो जुगप्पहाणेचि लहइ संसई । अप्पपरेसिं कल्लाणकारओ गोयमपहुच ।। १३ ॥ तित्थस्स चुट्टिकारी अक्खेवणो कृतिस्थियाईणं । विउसनरसेवियकमो कमेण सिद्धिपि पावे ॥ १४ ॥"त्ति [यथा श्रेष्ठी तथा गुरखो यथा शातिजनस्तथा असणसंघः । यथा बध्वस्तथा भव्या यथा शालिकणास्तथा ब्रतानि ॥१॥ यथा सोज्झितनानी उज्झितशालियथार्थाभिधाना प्रेषणकर्तृत्वेनासंख्यदुःखखनिर्जाता ॥ २॥ तथा भव्यो यः कोऽपि संघसमक्ष गुरुवितीर्णानि प्रतिपय समुज्झति महानतानि महा
[७५]]
~ 242~