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________________ करो, किन्तु मन को बुषित न होने दो। तखत मूलनायक प्रभु, बैठावे तिण वार । जिनघर कलश चढ़ावतां, चन्द्र योग सुखकार ।। १६६ ॥ पौषधशाल निपावतां, दानशाल घर हाट । महल दुर्ग गढ़ कोट नो, रचित सुघट धुर घाट ।। १६७ ।। संघ-माल आरोपतां, करतां तीरथ-दान । दीक्षा मंत्र बतावतां, चन्द्र जोग परधान ।। १९८ ॥ घर नवीन पुर गांव में, करतां प्रथम प्रदेश । वस्त्राभूषण संग्रहत, ले अधिकारे देश ॥ १६६ ॥ योगाभ्यास करत सुधि, औषध भेषज मीत । खेती बाग लगावतां, करतां नृप सुं प्रीत ॥ २०० ॥ .. राज तिलक आरोपतां, करतां गढ़ परवेश । चन्द्र जोग में भूपति, विलसे सुख सुदेश ॥ २०१ ॥ राज सिंहासन पग धरत, करत और थिर काज । चन्द्र जोग शुभ जानजो, चिदानन्द महाराज ॥ २०२ ॥ (चौपाई) मठ देवल अरु गुफा बनावे । रतन धातु कुं घाट घड़ावे ॥ - इत्यादिक जग में बहु ये काम। चन्द्र योग में प्रति अभिराम ॥२०३।। चन्द्र जोग थिर काज प्रधान । कह्यो तास किंचित अनुमान ॥ अर्थ-चन्द्र स्वर में जो-जो कार्य करने चाहिएं अब मैं उनका विस्तार पूर्वक वर्णन करता हूं । इस स्वर में निम्न प्रकार के कार्य करने से शुभ, सुखदाई और शान्तिदाता होते हैं-१६३ ____ शान्त और स्थिर कार्यों को चन्द्र स्वर में करना चाहिये जैसे कि नये जिन- . मन्दिर का बनाना, मन्दिर की नीव को खुदवाना चन्द्र स्वर के योग में करना चाहिये-१६४ चन्द्र योग में अमृत-स्राव तथा सूर्य के समान द्युति होती है। ऐसे समय में यदि जिन-बिम्ब की प्रतिष्ठा की जावे तो वह विश्व को बहुत प्रभावशाली और चमत्कारी होती है-१६५ मूलनायक की मूर्ति को गद्दी (गादी) पर विराजमान करना, मन्दिर पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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