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राग द्वेष का त्याग ही समाधि है।
अधोभाग जल चलत है, षोडश अंगुल' मान । वर्तुल है आकार तस, चन्द्र सरीखो जान ॥११२॥ चारांगुल पावक चले, उर्ध्व दिशा स्वर मांहि । त्रिकोण आकार तास, बाल रवि सम आहि ।।११३।। वायू तिरछा' चलत है, अष्टांगूल नित मेव । ध्वजा रूप आकार तस, जानो इन विधि भेव ॥११४।। नासा संपुट में चले, बाहिर नवि परकास । शून्य अहे आकार तस, स्वर युग चलत आकास ॥११५।। प्रथम पचास५ पल' दूसरो, चालीस त्रीजो त्रीस । बीस अरु दस पल चलत है, तत सुर में निश-दिश ।।११६॥ त्वरित: शीतलोऽधस्तात्सितरुक द्वादशांगुलः ।
वरुण: पवनस्तज्ज्ञ बहनेनावसीयते ।।२५॥ अर्थ-जो शीघ्र बहने वाला हो; कुछ निचाई लिए बहता हो, शीतल हो, उज्ज्वल (शुक्ल) दिप्ति रूप हो तथा बारह अंगुल बाहर आवे ऐसे पवन को वरुण मंडल (जल मंडल) का पवन निश्चय करना-२५
तिर्यग्वहत्यविश्रान्तः पवनाख्यः षडंगलः ।
पवनः कृष्णवर्णोऽसो उष्णः शीतश्च लक्ष्यतः ।।२६।। अर्थ-जो पवन सब तरफ तिर्छा बहता हो, विश्राम के बिना निरन्तर बहता रहे, छः अंगुल बाहर आवे, नीला वर्ण हो, उष्ण हो तथा शीत भी हो ऐसे पवन को वायु मंडल पहचानना चाहिए।
बालार्क सन्निभश्चोर्ध्व सावर्तश्चतुरंगूल': । - अत्युष्णो ज्वलनाभिख्यः पवन कीर्तितो बुधैः ।।२७।। · अर्थ-जो उगते हए सूर्य के समान रक्त वर्ण हो तथा ऊचा चलता हो, चक्रों सहित फिरता हुआ चले, चार अंगुल बाहर आवे और अति उष्ण हो. ऐसा अग्नि मंडल का पवन पंडितों ने कहा है।
चिदानन्द जी महाराज कृत इस स्वरोदय सार तथा इस ज्ञानार्णव में स्वरों के बाहर जाने के नाप प्रमाण में मत भेद है । ज्ञानार्णव में पृथ्वी में श्वास आठ अंगुल प्रमाण कहा है। तथा १२ अंगुल तक श्वास जाता हो तो पृथ्वी तत्त्व समझना चाहिए, ऐसा चिदानन्द जी मानते हैं। इसी प्रकार बाकी के तत्त्वों के परिमाण के विषय में समझना चाहिए ।
३४-क्योंकि आकाश शून्य पदार्थ है। ३५-पृथ्वी तत्त्व पचास पल, जल तत्त्व चालीस पल, अग्नि तत्त्व तीस
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